कविता

शीर्षक – विरहिणी की होली

सखी री! होली है आई।
साथ खुशियां है लाई।।
खेलेंगे सब मिलजुल होली।
निकलेंगे टोली की टोली।।
होगी बरसात विभिन्न रंगों की।
पुत जायेगी चेहरे सभी की।।
घर-घर विभिन्न पकवान बनेंगे।
मुहल्ले खुशबू से भर उठेंगे।।
दु:ख तो है सखी सुन तो सही।
सजन पास मेरे यहां है नहीं।।
ना कोई संदेश ही भिजवाया।
ना ही लिखी चन्द शब्दों की पाती।।
ना ही भेजी उन्होंने नयी सारी।
ना ही जरीदार लहंगा वह चुनरी।।
दिन भर टकटकी लगाए रहती हूं।
आस में हरदम द्वार पर बैठी रहती हूं।।
ना मोरे देवर ,ना नन्द है कोई।
मैं रहती हरदम से खोई-खोई।।
किसके संग खेलूंगी मैं होली।
ससुरे में नहीं है कोई हमजोली।।
जो मैं होती मां-बाप के घर।
खेलती रंग पिचकारी भर-भर।।
सब सखियां मेरी खेलेंगी होली।
मैं नीर भरी आंखों से देखूंगी होली।।
पिया जो समझते ये दु:ख मेरा।
कभी न बनाते परदेश में डेरा।।
— मंजू लता

मंजु लता

पिता का नाम -बद्री सिंह चौहान माता का नाम - मुन्नी देवी शिक्षा - M.A.hindi , Education , B.ed सम्प्रति - व्याख्याता हिन्दी ,लेखिका अनुभव - 11 वर्षो से निरंतर पुरस्कार - Best teacher award प्रणेता साहित्य द्वारा सर्वश्रेष्ठ पद्य रचना प्रशस्ति पत्र प्रकाशित रचना- दैनिक नवीन कदम काव्यधारा में कविता ' बसंती बहार' उत्कर्ष मेल पाक्षिक में कविता ' गौरी की शिव वंदना' और कहानी अनूठा प्रेम' विजय दर्पण टाइम्स डेली में कविता रवि का उजियारा, नारी कभी न हारी अभ्युदय हिन्दी मासिक पत्रिका मे लघु कथा 'होली के रंग' दैनिक आधुनिक राजस्थान कविता ' मैं अबला नारी नहीं हूँ ' और नारी का महत्त्व राष्ट्रीय पाक्षिक समाचार पत्र ' की लाइन टाइम्स' में ' नारी कभी न हारी ' दैनिक इंडिया प्राइम टाइम्स में 'नारी का महत्त्व पता - प्लॉट न. 163 , विशाल नगर नवदुर्गा झालामंड जोधपुर (राज.) pincode- 342005 फोन न. - 8949964672