कविता

कब्र खोदते रहें

अभी कुछ दिन पहले
कुछ बुद्धिमानों की फौज मिलकर
मेरी कब्र खुदने के नारे
चीख चीखकर लगा रही थी
उन नासमझों को कौन समझाए
ऐसा करके वे मेरे लिए खाद ही पैदा कर रहे थे।
वे बार बार मुझे नीचा दिखाने का
खूबसूरत प्रयास करते हैं,
मुझे बेवजह वाक ओवर दे देते हैं।
उन्हें पता नहीं कि
जितना वे मेरे मरने का सपना देखते रहेंगे
मेरे उम्र ही नहीं मेरी सफलता, मेरे जलवे
उतनी ही लंबी छलांग लगाते रहेंगे।
उनके मालिक ही उन्हें उकसाते हैं
अपने ही पैरों में बेड़ियां डालते हैं,
मुझे उनकी बुद्धि पर तरस आ रहा है
पर जो भी हो रहा है
अच्छा ही हो रहा है,
वे जो कर रहे हैं
ईश्वर की कृपा से
मेरा तो काम और आसान हीकर रहे है
मैं एक कदम चलकर तीसरे कदम पर
स्वत: पहुंच जाता हूं।
मेरी गुजारिश है वे रोज मेरे मरने,
मेरी कब्र खोदने के सपने देखते रहें,
और खूब चीखते चिल्लाते रहें
जनता को उकसाते, विरोध प्रदर्शन करते हैं,
मुझे बदनाम करने के
बेशर्म हथकंडे अपनाते रहें।
बद्दुआओं का नया रिकॉर्ड बनाते रहें
मेरे मरने की कामना के साथ ही
रोज रोज  हवा में कब्र खोदते रहें।
मेरी मदद ऐसे ही करते रहें,
मेरी राह के कांटे हटाते रहें
चूहे बिल्ली का खेल खेलते रहें,
मन की तसल्ली करते रहें,
बुद्धिमानी का प्रदर्शन करते रहें
लालीपाप चूसते रहें।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921