कविता

होली है भाई होली है

अभी अभी यमराज से
आनलाइन मुलाकात हो गई,
उनके चेहरे पर होली खुशी ऐसे गायब थी
जैसे भैंस पानी में चली गई,
मुरझाए चेहरे की फक्क सफेदी
मुझे अंदर तक हिला गई।
मैंने उदासी का कारण पूछा
मेरे सवाल पर यमराज का गला भर आया,
कवि महोदय मेरी व्यथा कोई सुनता ही नहीं
मेरी बात सुनना तो दूर
मेरे सामने कोई रुकता ही नहीं।
अब आप रुक ही गये हैं
लगता है बड़े जीवट वाले हैं,
तो मेरी व्यथा सुन लीजिए
मेरी पीड़ा को कविता के रूप में
जनता के सामने रख दीजिए।
इस बार मैं भी धरती पर
होली खेलना चाहता हूं
होली का हुड़दंग मचाना चाहता हूं।
पर मेरी योग्यताएं इतनी नहीं हैं
होली मनाने की धरती की
विशेष योग्यताएं मुझमें नहीं हैं
मैं तो जेल में होली मनाना चाहता था,
कुछ खास खास लोगों को रंग लगाना चाहता था,
पर अफसोस कि मुझे भ्रष्टाचार करना नहीं आया
हवाला से पैसे भी नहीं बना पाया
नौकरी के बदले लूटने का हुनर भी नहीं मुझमें
सत्ता की आड़ में करोड़ों की नकदी
और सम्पत्ति बनाने का मौका भी नहीं मिला मुझे।
नौकरशाही की आड़ में करोड़पति
बनने की राह मिली ही नहीं,
माफिया का लेबल भी नहीं लगा मुझ पर
जेल जाने का कारनामा भी
मेरी योग्यताओं में शामिल नहीं है,
इसलिए धरती पर होली मनाने की छूट
आपकी सरकार नहीं दे रही है।
अब आप कुछ मदद कीजिए
किसी भ्रष्ट मंत्री का पी ए
या माफिया का शूटर ही सिद्धि कर दीजिए
किसी तरह जेल जाने का रास्ता बना दीजिए,
इतना नहीं कर सकते तो
किसी धर्म के अपमान का आरोप मढ़ दीजिए
या राष्ट्र विरोधी होने का लेबल भी
चस्पा कर दीजिए,
कुछ नहीं तो सरकार को नकारा सिद्ध कर
मेरे लोकतांत्रिक अधिकार बहाल करवा दीजिए।
जैसे भी हो मेरी होली का सपना साकार करना दीजिए।
एक और रास्ता सीधा सा है
किसी मंत्री, मुख्यमंत्री को मेरे नाम से धमकी दे दीजिए।
बड़ी मुश्किल से होली पर अवकाश मिल रहा है
केवल एक दिन और बचा है
मेरी होली को यादगार बनाने में
आप ही कुछ योगदान दीजिए।
अब इतना भी नहीं कर सकते हैं आप तो
कवि साहित्यकार कहलाना छोड़ दीजिए,
और बुरा मत मानिए मेरे साथ आप ही होली खेलिए
धरती पर होली खेलने के मेरे सपने को
कम से कम मरने से बचा लीजिए
मेरी होली की शुभकामनाएं ही स्वीकार कर लीजिए
मेरे हाथों से रंग गुलाल लगवाकर
मुझे भी अपने कीचड़ भरे रंगों से
तरबतर कर दीजिए,
दो चार गुझिया , थोड़ा नमकीन पापड़
और धरती का पकवान भी खिला दीजिए,
होली है भाई होली है
बुरा मानकर आप भी न मुंह मोड़ लीजिए,
मेरे साथ होली मना लीजिए।
होली मिलन का त्योहार है
हमारे लोक तक ये संदेश तो पहुंचाइए
मेरे सपने को साकार कराइए
आइए मेरे साथ होली का हुड़दंग मचाइए।
होली के हुड़दंग में भांग खाइए
दारु पीकर गटर में नहाइए
आइए हमारे साथ होली मनाइए।

— सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921