कविता

नीचे से ऊपर तक चल रहा है यह खेल

नीचे से ऊपर तक चल रहा है यह खेल
रिश्वत ही बचा लेती हैं जाने से जेल
बाबू से मंत्री तक बना है तालमेल
फिर काहे को जाएंगे जेल
ठसके से लेते हैं रिश्वत
फिर काहे का रिस्क
ऑफिस हो या स्टेशन
रेट सब जगह हैं फ़िक्स
ऊपर से नीचे गजब की चैन के खेल
जाते हैं कुछ दिन जेल
झटके से सेटिंग कर हो जाता हैं मेल
उल्टा कंप्लेंट करने वाले को होती है जेल
नागरिकों को चकरे खिलाकर करते हैं फेल
फिर चलता है पैसे का खेल
फाइल आगे सरकती है तब
जब हो जाती है सेटिंग की खेल
ईश्वर अल्लाह देख रहा है
श्यानपती चतुराई होगी फेल
वह सब देख रहा है तेरे खेल
बीमारियां विपत्तियां देकर बोलेगा झेल
— किशन सनमुख़दास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया