लघुकथा

पेंडिंग

इसे सुविधा शुल्क कहें, कमीशनखोरी, उत्कोच या पहिया, है तो यह रिश्वत ही!
यों तो रिश्वत लेना और देना दोनों ही कानूनी अपराध हैं, पर यह मानता ही कौन है!
पहिये के बिना गाड़ी नहीं चलती, रिश्वत के बिना फाइल! कोई भी काम बनाना हो, चलाओ रिश्वत!
तनु का प्रोमोशन का केस पेंडिंग था. अभी कुछ हो गया तो ठीक है, अगले साल तो वह रिटायर हो जाएगी, फिर कौन करेगा सुनवाई!
अभी ही कौन-सी सुनवाई हो रही है!
वह हाफ डे लीव लेकर फाइल खिसकवाने गई, लंच के बाद तो काम होगा ही नहीं!
“मैं छुट्टी पर हूं.” अपनी सीट पर अच्छे-खासे जमे-जमाए काम करने वाले बड़े बाबू ने कहा. उसे बैरंग लौटना पड़ा.
ऐसे ही बहाने चलते रहे, वह रिटायर भी हो गई.
सीधे मुंह किसी ने रिश्वत मांगी नहीं, फिर रिश्वत देने का उसे न अनुभव था, न तरीका मालूम था, तीस साल से उसका केस पेंडिंग चल रहा है. सुलटने की कोई उम्मीद भी नहीं है. हारना उसने सीखा नहीं है.
केस भी पेंडिंग है, उसकी उम्मीद भी!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244