मुक्तक/दोहा

होला महके खेत में

होला महके खेत में, सोंधी लगे मिठास।
छाछ दही सह पीजिए, गन्ने  का रस खास।।
होला भुनता मेंड़ पर, महक उठे आकाश।
मिर्चा बुकनू रायता, रखो हमेशा पास।।
गेहूँ बाली भूँज कर, खाओ गुड के साथ।
क्षुधा शांत कर तृप्ति दे, प्रमुदित दीनानाथ।।
चना भूँज कर खाइए, ताल खेत नद तीर।।
होला हर्षित है करे, झोंपड़ महल कुटीर।
हरे चना को पीस कर, बने कचौड़ी चाट।
‘मलय’ निमोना स्वाद प्रिय, रहे अँगुलियाँ चाट।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com