गीत/नवगीत

सीमाएं

सीमाओं में बंधकर सृष्टि,
रूप  अनेकों   पाती  है,
बंधन ही तो मुक्ति कि सीमा,
गर्वित हो कह जाती है।

जब जब सीमाएं टूटी हैं,
दुख  के  वारिद बरसे हैं,
उजड़ी संस्कृति और सभ्यता,
प्रगति  हेतु  पल तरसे है,
इच्छायें सीमा में रहकर,
मंगल  ध्वज फहराती हैं,
बंधन ही तो मुक्ति कि सीमा,
गर्वित  हो  कह जाती है।

सूर्य चंद्रमा धरती अम्बर,
सिमटे  सब सीमाओं में,
सीता  ने विश्वास किया ना,
लक्ष्मण  की  रेखाओं में,
ये नन्हीं त्रुटियाँ ही नभ को,
धरती  पर  ले  आती हैं,
बंधन ही तो मुक्ति कि सीमा,
गर्वित  हो कह जाती है।

नियम नीतियाँ प्रतिपालक है,
सज्जनता  शुभदाई  है,
वाणी ,वचन,कर्म की परिधी,
मर्यादा   फलदाई  है,
गगन धरा का हरित छोर ले,
चुनर  हरी  लहराती है ,
बंधन ही तो मुक्ति कि सीमा,
गर्वित  हो कह जाती है।

— सीमा मिश्रा

सीमा मिश्रा

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार, उ0प्रा0वि0-काजीखेड़ा,खजुहा,फतेहपुर उत्तर प्रदेश मै आपके लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका से जुड़कर अपने लेखन को सही दिशा चाहती हूँ। विद्यालय अवधि के बाद गीत,कविता, कहानी, गजल आदि रचनाओं पर कलम चलाती हूँ।