कविता

भारतीय संस्कृति समाज पोषक

 

आज ही नहीं सदियों से

भारतीय संस्कृति समाज का

पोषण करती आ रहा है,

मानवीय गुणों को पोषणीय बना रही है

जन मन ही नहीं, मानव मानव को

जाति, धर्म, सम्प्रदाय को सहेजती आ रही है

मानवीय मूल्यों को जागृति करती आ रही है

विभिन्न समाजों में भाईचारे का सूत्र बन रही है

वसुधैव कुटुंबकम् का विस्तार कर रही है।

आदि संस्कृति का परचम आज भी लहरा रही है।

भारत के गौरव को ऊंचा कर रही है

विश्व में भारत का स्वाभिमान बन रही है

भारतीय संस्कृतियां समाज का पोषण कर रही है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921