कविता

झूठा वादा

चाँदनी क्यूँ शरमाई थी
रात नींद नहीं आई  थी
अँधेरों का यहाँ साया था
शायद दर पे कोई आया था

उनकी वदन की खुशबू से
फिजां में महका चन्दन था
दरवाजे पे लगी थी    कुन्डी
पर उनका ही दिखा वन्दन था

दरवाजे पे सजी थी अल्पना
डूबा था ले उनकी ही कल्पना
अक्स उनका जहाँ दूर खड़ा था
दिल में उनकी प्यार   पड़ा था

करवटें बदलते रात थी गुजरी
नींद भी लुट गई थी जहाँ मेरी
फिर भी तन्हा की बॉहों में बीता
अश्क ने मेरी हौसला को सींचा

क्यूं होता है ये प्यार मोहब्बत
झुठे हैं ये दिल की   गुरबत
तोड़ दो सारे नियम  व कायदे
झुठा है सब प्रेम मेो  वायदे

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह
पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088

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