अपनत्व में पारदर्शिता
अपनत्व भाव है भावना है आत्म साधना है,
अपनत्व किसी से भी हो सकता है
पर हर किसी के लिए नहीं हो सकता
खून के रिश्तों में ही अपनत्व हो
ऐसा भी नहीं होता।
जब मन मिल जाते हैं
आपसी विश्वास बढ़ते जाते हैं।
तब अपनत्व स्वमेव जन्म ले लेता है।
अपनत्व किसी के बीच
किसी भी उम्र में हो सकता है
अपनत्व जाति धर्म मजहब नहीं देखता
अमीरी गरीबी के तराजू पर नहीं तुलता
बस अपनत्व के रिश्तों का जन्म हो जाता है।
अपनत्व के ये रिश्ते खून के रिश्तों से भी
अधिक प्रगाढ़ और मधुर हो जाते हैं,
देखने वाले भी आश्चर्य में पड़ जाते हैं ।
ये अपनत्व का ही कमाल होता है,
जहां अपने मुंह फेर लेते हैं
वहां अपनत्व के ये रिश्ते बड़े काम आते हैं।
अपनत्व की पहली और आखिरी शर्त है
विश्वास के साथ मन में पारदर्शिता सबसे जरूरी है
पारदर्शिता से ही आपसी विश्वास बढ़ता है
संदेह का बादल नहीं छा पाता है
तभी अपनत्व का रिश्ता निभ पाता है
पारदर्शिता से ही अपनत्व का रिश्ता
नया इतिहास बना जाता है।
रिश्तों को नया आयाम दे जाता है
पारदर्शिता बनी रहे तो
अपनत्व का रिश्ता अमर भी हो जाता है
जाने कितने रिश्तों की कमी पूरी कर देता है
खून के रिश्तों का फ़र्ज़ ये रिश्ता निभा देता है
जाने कितने भाइयों की सूनी कलाई पर
नेह की डोर का बंधन बन सज जाता है
तो जाने कितनी बहनों की डोली को
अपने कांधे पर उठाता है
अपनत्व का ये रिश्ता इतना मजबूत बन जाता है
कि फ़र्ज़ की खातिर कितनों को जीवन दे देता है
तो किसी के बुढ़ापे का मजबूत सहारा बन जाता है
ये सब महज पारदर्शिता से ही संभव हो पाता है
अपनत्व का ये रिश्ता किसी परिचय का
तनिक भी मोहताज नहीं होता है,
किसी पर एहसान भी नहीं करता
बस अपनत्व का रिश्ता निभाता है
अनजानों से भी ऐसा रिश्ता बन जाता है।