गीत/नवगीत

मुक्त नहीं है मन का कोई वातावरण

मुक्त नहीं है मन का कोई वातावरण।।
नाता से नाता हरण…!

वेदनाओं का शूल और
छाती की धड़कन ।
अभी भी याद है वह
देखा हुआ अबोध स्वपन।।

कभी इस संशय में
कभी उस संशय में मेरा मन ।
मुक्त नहीं है मन का कोई वातावरण…।।
रिश्तो से रिश्ता हरण…!!!

गीत कवित सिर्फ नजरों का नयन ।
प्यासा ही रहा मेरा ये स्वांस का पवन।।
मोहब्बत का ख़्याल दिल की कम्पन ।।

कभी इस संशय में
कभी उस संशय में मेरा मन।।
मुक्त नहीं है मन का कोई वातावरण…।।
नाता से नाता हरण…!!!

खाली आकाश में एक सूनापन ।
सिर्फ हवाओं का ही है भ्रमण…।।
खाली ही रह गया मेरा अन्त : करण ।।

कभी इस संशय में
कभी उस संशय में मेरा मन ।।
मुक्त नहीं है मन का कोई वातावरण…।।
नाता से नाता हरण…!!!

— मनोज शाह मानस

मनोज शाह 'मानस'

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