सामाजिक

अपने ही, अपनों की आंखों मे तब खटकते

आज कि भागमभाग जिंदगी में हर कोई एक दूजे से आगे निकलना चाहता है। हर कोई चाहता है कि, हम जल्द आगे बढ़ें और तरक्की करें परंतु हमारे रास्ते में कोई भी व्यवधान उत्पन्न ना करें। चाहे, वह व्यवधान उत्पन्न करने वाले हमारे ही क्यों ना हो वह व्यवधान भी जो उत्पन्न किया जा रहा हो चाहे हमारे हित में ही क्यों ना हो। परंतु कहां किसी को पसंद की कोई किसी को टोकाटोकी करें चाहे वह हमारे बड़े बुजुर्गों ही क्यों ना हो जो हमारे हित में सोचते हुए, हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। परंतु आज के लोगों में सहनशक्ति नाम की चीज ही कहां है। उन्हें तो तब अपने ही दुश्मन नजर आते हैं, जब उनके अपने उन्हें सही सलाह देते हैं और सही कार्य करने के लिए सदैव प्रेरणा देते रहते हैं। जब हमारा एकल परिवार हो या संयुक्त परिवार हो तो हर किसी को एक दूसरे के बारे में जानकारी होती ही है कि कौन क्या कर रहा है। फिर भी कुछ लोग ऐसे होते हैं परिवार के अंदर ही *घर का भेदी लंका ढाए* वाले मुहावरे पर खरे उतरते हैं और वह घर के अंदर ही रहकर कुछ अनैतिक कार्यों में घुसकर पथ भ्रमित हो जाते हैं। जब परिवार वालों को उनके बारे में पता पड़ता है, तो वह अपना जानकर वह सदैव मार्गदर्शन करते हुए समझाते रहते हैं। परंतु जिसे शॉर्टकट तरीके का चस्का लग गया हो या कोई भी अवैधानिक तरीके से आगे बढ़ने का रास्ता मिलता जा रहा, उसमें खूब पैसा कमाए या किसी को नीचे गिराने, किसी को अपने जाल में फंसाने, या जब विभिन्न प्रकार के अवैधानिक कार्य हो उसे किसी भी प्रकार का व्यवधान पसंद नहीं आता है। परंतु अवैधानिक कार्य करने वाला यह भूल जाता है, कि वक्त का चक्र कब कैसे पलट जाए और कब वह चक्र पलट कर उसी के ऊपर गिर जाए कह नहीं सकते। इसलिए यदि घर के लोग अपना जानते हुए, आप से स्नेह रखते हुए, आप कोई सही राह दिखा रहे हैं तो, ऐसे लोगों का बल्कि सम्मान करते हुए, उनकी बात मान कर अपने हित के बारे में सोचने के बजाय उनसे नफरत करते हैं। अपने ही लोगों के बीच में रहकर अपने लोगों से नफरत करते हुए, आप सुखी नहीं रह पाएंगे। अपने तो, अपने ही होते हैं। पराए या ये कहें बाहर वाले तो चार दिन की चॉंदनी की तरह बस साथ देंगे और 1 दिन मतलब निकल जाने के बाद आप को लात मारकर किस तरह ठोकर मार कर चले जाएंगे आप को पता भी नहीं चलेगा और तब तक आपके अपने आप से कितना दूर हो जाएंगे यह कह नहीं सकते। आपके पास पछतावे के लिए चंद आंसू बहाने के सिवा कुछ साथ नहीं रहेगा। ऐसे लोगों का तो साक्षात भगवान भी साथ नहीं देते हैं। वह सोचते हैं कि भगवान हमारे साथ है हमारा तो कुछ अहित हो ही नहीं रहा, परंतु यह वक्त की मार जब लगती है ना, तो सब धूमिल हो जाते हैं इसलिए अपनों का साथ दीजिए, अपनों के साथ रहकर अपना विकास कीजिए।

— वीना आडवाणी तन्वी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित