लघुकथा

यह निगल रहा है

रमा ग्रीष्मावकाश में स्कूल की छुट्टी के बाद घूमने की लंबी योजना बना रही थी। तभी उनके पति अरविंद ने गोवा जाने की योजना बनाई। रेल का टिकट करवा लिया गया। 8 वर्षीय इकलौती बेटी आयुषी बहुत प्रसन्न थी। पापा मम्मी और आयुषी को छुट्टीयों में घूमना वरदान सा लग रहा था। उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर यात्रा रेल से हो रही थी। रेल में और भी लोग और बच्चे ग्रीष्मावकाश की छुट्टियों में घुमने के उद्देश्य से रेल का सफर कर रहे थे। रेल में सभी बच्चे घंटों मोबाइल में  मनोरंजन और खेल के लुफ्त के साथ-साथ अनावश्यक, अश्लील और फूहड़  वीडियो देख रहे थे। साथ ही उनके माता-पिता भी मोबाइल में लगे हुए थे। किंतु आयुषी लगातार अलग-अलग किताबें पढ़ रही थी। तभी एक सामने वाली सीट पर बैठी महिला ने आयुषी की मां से पूछा कि आप तीनों लोग मोबाइल ना देख कर किताबे पढ़ रहे हो। हमें आश्चर्य हो रहा है। आपकी बेटी मोबाइल के बगैर कैसे रह सकती है! तभी आयुषी की मां ने कहा इसके लिए हमने घर में ऐसा वातावरण तैयार किया है । हमारी कार्यशैली को  व्यवहार में उतारा है। हमने अपने जीवन में मोबाइल से ज्यादा किताबों को महत्त्व दिया है। जिसके परिणाम से मोबाइल हमसे दूर है और हम किताबों के पास में हैं। तभी मेरी प्यारी बिटिया किताबों के संसार में खो जाती है। किताबों से जूड़कर हम शांति और सुकून का अनुभव कर रहे हैं। मोबाइल और इंटरनेट ने बच्चों को मां-बाप से अलग कर दिया है। एक परिवार के विचार से जुड़ने वाली माला के मोतियों को बिखेर दिया है। एक भयानक दुनिया मैं ले जाने के लिए यह निगल रहा है। बहन जी, आज यह मोबाइल इन नन्हे बच्चों के जीवन का नाश कर रहा है। इनके बचपन को लूट रहा है। दूषित विचारों का जहर इनके पूरे शरीर में फैल रहा है। बुढ़ापे की जिसे हम लाठी कहते हैं। अभी से बच्चे अलग संसार में प्रवेश कर रहे हैं और मां-बाप इस मोबाइल के कारण अपने बच्चों को  संस्कारों से दूर होता देखकर असहाय है क्योंकि वे खुद इस आधुनिक विश्व रोग से ग्रसित हैं।”
इतना सुनकर पड़ोसी महिला अपराधी की भांति मौन थी।
— डॉ.कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773