गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कटी रात कैसे रवानी न पूंछो.
ग़मे इश्क की कुछ कहानी न पूछो.

सितम को बताते रहे वो मुहब्बत.
अज़ब रहनुमाई दिवानी न पूंछो .

रहे घाव रिसते अभी दर्द गहरा,
मुहब्बत में उसकी की निशानी न पूंछो.

जफ़ाओं को उनकी निभाया वफ़ा से,
सिला इश्क का बदग़ुमानी न पूंछो .

न मैं कह सकूंगी न तुम सुन सकोगे,
समझ लो इशारा जुबानी ना पूछो.

‘मृदुल’ हर कहानी का किरदार कुछ है,
कटी किस तरह जिंदगानी न पूछो |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ, उत्तरप्रदेश

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016