ग़ज़ल
कटी रात कैसे रवानी न पूंछो.
ग़मे इश्क की कुछ कहानी न पूछो.
सितम को बताते रहे वो मुहब्बत.
अज़ब रहनुमाई दिवानी न पूंछो .
रहे घाव रिसते अभी दर्द गहरा,
मुहब्बत में उसकी की निशानी न पूंछो.
जफ़ाओं को उनकी निभाया वफ़ा से,
सिला इश्क का बदग़ुमानी न पूंछो .
न मैं कह सकूंगी न तुम सुन सकोगे,
समझ लो इशारा जुबानी ना पूछो.
‘मृदुल’ हर कहानी का किरदार कुछ है,
कटी किस तरह जिंदगानी न पूछो |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ, उत्तरप्रदेश