कहानी

मैं भी इंसान हूँ

पति-पत्नी भोर चार बजे खाट छोड़ अपने-अपने कामों में लग जाते हैं। घासीराम खेत चला जाता है। पुष्पा घर-आँगन को झाड़ू-पोंछा करके खाना बनाती है। सात बजे तक घासीराम हाँथ-मुँह धोकर घर लौट आता है। खाना खाकर साढ़े सात बजे तक बड़े किसानों का खेत पहुँच जाता है। पुष्पा अपने खेत में काम करती है। जब खेत में काम नहीं रहता है। तब मजदूरी करने चली जाती है।
घासीराम के गाँव में सभी जाति के लोग खेती करते हैं। धरती पुत्र कहलाने वाले कोईरी जाति से लेकर कुरमी, मुण्डा, नाई, मछुआ, चमार, लोहार और धोबी भी खेती करते हैं। खेती करने की तौर-तरीके के अच्छे जानकार कोईरी जाति के किसान हैं। इसलिए, उनके खेतों में ही घासीराम मजदूरी करने जाता है। घासीराम भी खेती करने की तौर-तरीके सीख गया है, जो इनकेे खेतों में भी बड़े किसानों की तरह मटर, बीन, गाजर, पालक और आलू आदि फ़सल लहलहा रही है। किंतु तीन खेतों में ही सीमित रह जाता है, जो पितृ सम्पति है। गाँव के मजदूरों में सबसे अधिक मांग घासीराम का रहता है। किसान इन्हें छोड़ना नहीं चाहते हैं। इनके घर में शाम को किसानों का आना-जाना लगा रहता है। एक किसान के जाने के बाद दूसरा किसान पहुँच जाता है।
पूस माह में एक सप्ताह तक की बारिश होने पर घासीराम और अन्य सभी बड़े-छोटे किसानों की फ़सल बर्बाद हो जाती है। फिर बारिश के बाद कुहासा ने आलू, मटर, बीन और पालक आदि फ़सल खेत में सड़ जाती है। जवान बेटा का अचानक मौत होने पर जैसे माता-पिता दुखी होते हैं। ठीक उसी प्रकार तैयार फ़सल के नष्ट होने पर आज किसान दुखी हैं। इस बार घासीराम केवल आलू, मटर और बीन की खेती की थी, जो खेत में ही सड़ कर स्वाहा हो चुका था। फिर नयी खेती करने के वास्ते बीज-खाद उधार में खरीदने गाँव के एकमात्र दुकान ‘ब्रजमोहन बीज भंडार’ चला जाता है। जहाँ इनका उधार खाता चलता है। ये कोई बड़ी बात नहीं है। ब्रजमोहन की दुकान मंे बड़े से बड़े किसानों का उधार खाता चलता है। ये किसानों को बीज, खाद और कीटनाशक उधार देता है। लेकिन साल भर का ब्याज रेट में ही जोड़ लेता है। किसानों को सूद पर कर्ज़ भी देता है।
घासीराम पूर्व का कर्ज़ अदा नहीं कर सका है। और फिर से उधार पर बीज-खाद लेता है। भोर ही खेत जाकर आधा खेत को बीज बोने और सिंचाई करने लायक करके मजदूरी करने चला जाता है। पत्नी दिन-भर में बीज बोने का काम पूरा कर लेती है। इस प्रकार चार-पाँच दिनों में दो खेत में बीज बो कर सिंचाई भी कर लेते हैं।
एक दिन पुष्पा खेत में काम कर ही रही है और अचानक उल्टी होने लगा। पुष्पा को उल्टी करते देख बगल के खेत में काम कर रही चाची सास आ जाती है। पुष्पा का हाथ-पैर और सिर छू लेने के बाद मुसकराती हुई कहती है, ‘‘घबराने की बात नहीं है। मेरे ख़याल से तो खुशखबरी है।’’
‘‘कैसा खुशखबरी चाची?’’
‘‘तू माँ बनने वाली हो!’’
पुष्पा शरम से सिर झुंकाकर मंद मंद मुस्कुरा रही है। तभी चाची कहती है, ‘‘जब शाम को तुम्हारा मरद काम से घर आये। तब यह खुशखबरी सुनाना। सुनकर बहुत खुश होगा। मैं, जब पहली बार माँ बनने वाली थी। तब मेरा मरद खुशी से दूसरे ही दिन एक गाय खरीद लाया था। बच्चा को दूध-दही का कमी न हो कह के।’’
रात में सोने से पहले पुष्पा अपने पति को खुशखबरी सुनाती है। घासीराम सुनकर बहुत खुश हुआ। खुशी से कहने लगा, ‘‘अब हम दोनों के बीच एक तीसरा भी होगा। घर बहुत दिनों से सुना था। अब किलकारियों से गुँज उठेगा।’’
‘‘मैं, आज से ही एक-एक रुपया कानाचूका में रखना शुरू कर दी हूँ।’’
‘‘मैंने भी बहुत कुछ सोचा है। किंतु हम जैसे गरीब केवल मन में सोचते हैं। कभी पूरा नहीं कर पाते हैं। यदि भगवान ने चाहा तो पूरा हो सकता है।’’
‘‘हमें भगवान ने गरीब बनाया ही क्यों?’’
‘‘इस प्रश्न का जवाब तो मेरे पास नहीं है। लेकिन हमने शायद पिछले जन्म में कोई पाप किया था, जो इस जन्म में गरीबी का दंश झेलते हुए प्रायश्चित कर रहे हैं।’’
पाँच महीने के बाद पुष्पा खेत जाने में असमर्थ हो गयी। शरीर फूलने लगा है। खाना बनाना भी मुश्किल होने लगा है। घासीराम खुद भोर ही खाना बनाकर काम पर जाने लगा है। एक सप्ताह में शरीर फूलकर बैलून बन गया। पैर तो फूलकर हाथी का पैर बन गया है। घर में जो पैसा था, उससे घासीराम गाँव के झोला छाप डॉक्टर से इलाज कराया। जब दस दिनों तक दवा खाने पर भी फूलना कम होने के बजाय बढ़ने ही लगता है। तब घासीराम चिंता करने लगता है। किंतु घासीराम के पास शहर के डॉक्टर से इलाज कराने ले जाने का सामर्थ्य नहीं है। वहीं पत्नी की स्थिति बिगड़ती ही जाती है। घासीराम से देखा नहीं जाने लगा। तब सूद पर कर्ज़ लेने के वास्ते ब्रजमोहन की दुकान चला जाता है।
ब्रजमोहन मजदूरों के भरोसे खेती करता है। खेती के जानकार बूढ़ा मजदूर का पिछले वर्ष पूस की रात में ढंड लगने से मौत हो गयी। तब से खेती में जितनी फ़सल मिलनी चाहिए, उतनी फ़सल नहीं मिलती है। बड़े-बड़े किसान जो खाद और दवा दुकान से लेकर जाते हैं। उसी का प्रयोग मजदूरों से कराता है। फिर भी उपजाऊ उतनी नहीं होती है, जितनी होनी चाहिए। इसलिए ब्रजमोहन को एक अच्छे खेती के जानकार मजदूर की तलाश थी, जो आज सूद पर कर्ज़ लेने पर मजबूर किसान कम, मजदूर ज्यादा घासीराम सिंह मुण्डा दुकान में हाथ फैलाकर खड़ा है। यह बड़े-बड़े किसानों का वाफादार मजदूर है और ब्रजमोहन की नज़र में भी वाफादार है।
विवश घासीराम के सामने एक शर्त रखते हुए ब्रजमोहन कहता है, ‘‘यदि तुम मेरे खेत में मजदूरी करोगे, तभी मैं पैसा दे सकता हूँ।’’
‘‘मैं, सूद पर ही कर्ज़ मांग रहा हूँ।’’
‘‘तुमको तो पता ही है। मैं, सूद के बिना पैसा देता ही नहीं हूँ। देखो, मेरे पास अभी पैसा नहीं है। फिर भी यदि तुम मेरी बात मान जाते हो तो बैंक से निकाल कर दे दूँगा।’’
‘‘ठीक है, मैं आपके खेत में मजदूरी करूँगा। लेकिन मेरी भी एक शर्त है।’’
‘‘क्या?’’
‘‘मजदूरी प्रति दिन शाम को घर जाने के वक्त मिल जाना चाहिए।’’
‘‘मुझे तुम्हारा शर्त मंजूर है।’’
ब्रजमोहन बैंक से पैसा निकालने का बहाना कर रहा था। घासीराम के हाँ कहते ही पाँच हजार रुपये हाथ में थमा देता है। घासीराम सुबह की बस से पत्नी को शहर लेकर चला जाता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ0 नीलम देवी के क्लिनिक में चेकअप फीस आठ सौ देखकर नंबर ले लेता है। डॉ0 नीलम देवी चेकअप करने के बाद कुछ जाँच लिख देती हैं। जाँच में तीन हजार रुपये लग जाता है। जाँच रिपोर्ट देखने के बाद डॉ0 नीलम देवी दवा की लिस्ट लिखकर कहती हैं, ‘‘आपकी बीबी के शरीर में खून की कमी है। इसीलिए शरीर फूल रहा है।’’
‘‘मैडम ठीक हो जायेगी न!’’
‘‘अरे! हम किस लिये डिग्री लेकर बैठे हैं। तुम चिंता मत करो! तुम्हारी बीबी जल्द ठीक हो जायेगी। घबराने की आवश्यकता नहीं है, ओके।’’
‘‘जी मैडम।’’
नर्स क्लिनिक के दवाखाना में पर्ची पहुँचा देती है। मैडम एक महीने की दवा लिखी हैं। एक महीने की कीमत ढ़ाई हजार रुपये हो रहा है। घासीराम के पास केवल एक हजार रुपये शेष है। जिससे घर जाने की बस भाड़ा भी दो सौ रुपये रख लेना है। बचा आठ सौ रुपया। जिसमें करीब दस दिनों की दवा लेकर घर लौट जाते हैं।
घासीराम सुबह पत्नी को दवा-पानी देकर शर्त के अनुसार ब्रजमोहन का खेत मजदूरी करने चला जाता है। जहाँ देखता है कि अधिकतर मजदूर पहले खेती करते थे, जो आज ब्रजमोहन के खेत में काम कर रहे हैं। सफेद कोईरी को देखकर तो चकित रह जाता है। फिर कहता है, ‘‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम तो गाँव के नामी किसानों में गिने जाते थे।’’
‘‘क्या बताऊँ घासीराम? मेरी किस्मत में यही लिखा था।’’
‘‘किस्मत-उस्मत छोड़, हुआ क्या था? ये बता न!’’
‘‘शायद! तुम भी ब्रजमोहन से कर्ज़ लिया है।’’
‘‘हाँ, पर मेरा कर्ज़ लेने पर तुम से क्या संबंध है? और मैंने कर्ज़ लिया है, ये तुमको किसने बताया?’’
‘‘मुझे किसी ने नहीं बताया है। लेकिन मुझे सब पता है। यहाँ जितने लोग काम कर रहे हैं। सब के माथे पर ब्रजमोहन का कर्ज़ है, जो अदा नहीं कर पाने पर बेगारी कर रहे हैं। केवल यहाँ दो बार खाना मिलता है। वह भी पेट भर नहीं और मशीन की तरह काम कराया जाता है। मैं तो काम करने का तौर-तरीके भी भूल चुका हूँ। और हाँ, जो तुम पूछ रहा है कि मैं यहाँ कैसे आया? एक दिन मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गयी थी। मेरे हाथ में फूटी-कौड़ी नहीं थी। तब मैंने ब्रजमोहन से सूद पर कर्ज़ लिया और डॉक्टर के पास ले गया था। पर पुत्र को बचा सका, न कर्ज़ ही अदा कर सका। आज मैं उस कर्ज़ पर बेगारी कर रहा हूँ।’’
‘‘तुम खेती करना क्यों छोड़ दिया?’’
‘‘फिर वही बात! पुत्र की मौत के बाद भी मैंने साहस करके अपनी जमीन पर खेती की थी। किंतु बेमौसम पानी और ओले ने मुझे बर्बाद कर दिया। एक तो सारी फ़सल बर्बाद हो गयी। दाने-दाने अन्न के लिए तरसने लगा था। वहीं ब्रजमोहन सूद जबरन मांगने लगा। विनती करने पर एक सप्ताह का समय दिया था। पर मैं एक सप्ताह में सूद अदा नहीं कर सका। तब ब्रजमोहन मेरी जमीन कर्ज़ के मूल्य पर हड़प ली। और मुझे सूद पर बेगारी कराने लगा। केवल पत्नी का मजदूरी देता है। वह भी उनके इच्छानुसार देता है। लेकिन तुम कितना कर्ज़ लिया है।’’
‘‘दस हजार रुपये और तुम कितना लिया था?’’
‘‘मैं, दस हजार रुपये, दस हजार रुपये करते पचास हजार रुपये ले लिया था।’’
‘‘खै़र, अब कर्ज़ ले लिया है तो जो भी होगा देखा जायेगा।’’ कहता घासीराम कुदाल पकड़कर काम करने लगता है।
दो दिन दवा खाते ही पुष्पा का फूला हुआ कम होने लगा। दस दिन में एक दम नॉर्मल हो गयी। इसलिए, फिर से दवा भी खरीदने की आवश्यकता अनिवार्य नहीं समझा। लेकिन अनिवार्य होने पर भी दवा कहाँ से खरीदता, लिया हुआ कर्ज़ जो अदा नहीं किया है। समय से एक सप्ताह पहले ही पुष्पा की तबीयत बिगड़ जाती है। घासीराम फिर ब्रजमोहन से दस हजार रुपये कर्ज़ लिया। और इस बार राज्य का बड़ा सरकारी अस्पताल रिम्स लेकर चला जाता है। डॉक्टर कभी दिन में एक बार आये तो ठीक, नहीं तो नर्स और जूनियर डॉक्टर के भरोसे इलाज चल रहा है। नर्स भी दवा लिखकर पर्ची थमा देती हैं। डिलीवरी से पहले ही दवा-पानी में आठ हजार रुपये खर्च हो जाता है। नॉर्मल डिलीवरी हो नहीं रही है। और ऑपरेशन करने पर पुष्पा को दो बोतल खून की आवश्यकता है। दो बोतल खून की कीमत लगभग तीन-चार हजार रुपये लग जायेगा, जो नर्स का कहना है। घासीराम के पास केवल दो हजार रुपये ही शेष है। लेकिन पत्नी का दर्द भी घासीराम से देखा नहीं जा रहा है। परेशान घासीराम पागल की तरह हॉस्पिटल में इधर-उधर घूम रहा है। अचानक ब्रजमोहन से मुलाकात हो जाती है। घासीराम हाथ जोड़कर ब्रजमोहन के आगे भीख मांगता है, ‘‘मालिक, मेरी पत्नी की हालत बहुत खराब है। ऑपरेशन नहीं किया गया तो मर जायेगी। ऑपरेशन से पहले नर्स का कहना है कि दो बोतल खून चाहिए। पत्नी को खून की कमी है। मालिक, दस हजार रुपये और दे दीजिए। आपकी कृपा होगी।’’
‘‘देखो! मैं पहले ही तुमको पन्द्रह हजार रुपये दे चुका हूँ। अब फिर दस हजार रुपये मांग रहे हो। यदि तुम सूद समेत अदा नहीं कर सका तो तेरी जमीन मेरी हो जायेगी।’’
‘‘हाँ, हाँ, मुझे मंजूर है।’’
‘‘देखो! बाद में मुकर मत जाना।’’ कहता ब्रजमोहन दस हजार रुपये का बंडल थमा देता है।
‘‘शायद भगवान ने आपको मेरे लिए ही भेजा है। मालिक, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।’’ कहता घासीराम इमरजेंसी रूम की ओर चला जाता है।
‘‘हाँ, वही समझो। मैंने तो यहाँ अपना उद्देश्य पूरा करने आया था, जो ईश्वर ने पूरा कर दिया। अब इनकी भी जमीन मेरी हो जायेगी। हो जायेगी नहीं, हो गयी। इनका औकात ही कहाँ है? कर्ज़ अदा करने का।’’ धीरे-धीरे फुसफुसाता है।
घासीराम पत्नी का ऑपरेशन कराता है। पुष्पा पुत्र को जन्म देती है। घासीराम बहुत खुश हुआ। सारा पैसा छुट्ठी मिलने तक में समाप्त हो गया। केवल भाड़ा देने भर का पैसा शेष बचा है। फिर भी घासीराम के चेहरे पर गम नहीं है। वह खुशी-खुशी पत्नी और बच्चा को लेकर घर चला जाता है। पहले की भाँति घासीराम घर का सारा काम करने के बाद ब्रजमोहन के खेत में मजदूरी करने जाने लगा। क्योंकि खेती करने पर भी तुरंत फ़सल तैयार नहीं होगी। और खेती करने के वास्ते बीज-खाद का पैसा चाहिए, जो घासीराम के पास नहीं है। यदि एक दिन भी मजदूरी करने नहीं जायेगा तो भूख से मरने की नौबत आ जायेगी। वहीं शर्तानुसार ब्रजमोहन के खेत में मजदूरी भी करने जाना है। इसी तरह साल-भर गुजर जाता है। अब पत्नी भी पुत्र को लेकर खेत जा सकती है। यही सोचकर घासीराम पड़ोसी के बैल से खेत की जोताई करने चला जाता है। भोर में ब्रजमोहन ठहलने निकलता है। घासीराम को हल-बैल के साथ देखकर कहता है, ‘‘घासीराम भोर ही हल-बैल लेकर कहाँ चला? मेरे खेत के अलावे भोर-भोर के समय दूसरे के खेत में भी काम करता है क्या?’’
‘‘नहीं मालिक, अपना खेत जोतने जा रहा हूँ। अब फिर से पहले की तरह अपने खेत में खेती करना चाह रहा हूँ।’’
‘‘अरे घासीराम! तुम्हारा बेटा का देखते-देखते एक साल हो गया।’’
‘‘हाँ मालिक, मेरा बेटा चलने भी लगा है। लेकिन आपसे उस दिन हॉस्प्टिल में मुलाकात नहीं होती तो अनर्थ हो जाता।’’
‘‘लेकिन तुम कुछ भूल रहा है।’’
‘‘क्या मालिक?’’
‘‘वही जो हॉस्पिटल में बात हुई थी।’’
‘‘कौन सी बात मालिक!’’
‘‘वही जो हॉपिस्टल में कहता था। यदि एक साल के अंदर कर्ज अदा नहीं कर सका तो मेरी जमीन आपकी हो जायेगी। लेकिन अब तक न कर्ज ही अदा किया, न सूद ही और न ही जमीन ही लिख दिया।’’
‘‘ये क्या बोल रहे हैं?’’
‘‘इतना जल्दी तुम सब भूल गया। गरीब लोगों की तो यही आदत है। काम हो जाने पर मुकर जाते हैं। तुम भी ऐसा करोगे, ये मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। हाँ, तुम जो बोल के पैसा लिया था। वही मैं याद दिला दे रहा हूँ। ताकि मुझे जबरन तुम्हारी जमीन लेने पर मजबूर ना करो।’’
‘‘जो मैंने कहता था। वह मुझे अच्छी तरह से याद है। मैंने आपसे कुल पच्चीस हजार रुपये कर्ज़ लिया है। उस दिन हॉस्पिटल में दस हजार लिया था। और मैंने कहा था कि यदि सूद समेत पैसा वापस नहीं कर पाऊँगा। तब मेरी जमीन आपकी हो जायेगी। लेकिन न मेरे और से, न आपके ओर से कोई समय निर्धारित नहीं किया गया था।’’
‘‘बीज-खाद और कीटनाशक आदि का पाँच हजार रुपये बाकी है। मैंने सब को एक जगह लिख दिया है।’’
‘‘कितना हुआ है?’’
‘‘पूरा-पूरा तीस हजार रुपये।’’
‘‘अच्छा ठीक है। मैं तीस हजार रुपये के सूद सहित लौटा दूँगा।’’
‘‘अब कब लौटा दोगे?’’
‘‘लेकिन!’’
‘‘लेकिन-उकिन कुछ नहीं! तीस हजार रुपये का दस रुपये सौकड़ा के हिसाब से एक महीना का तीन हजार रुपये होता है। बारह मीहने में छत्तीस हजार रुपये हो रहा है। यदि तुमको छः हजार रुपये छोड़ दूँ। फिर भी तीस हजार रुपये होता है। कुल मिलाकर साठ हजार रुपये हो रहा है। तेरी जमीन की कीमत आज के भाव में अधिक से अधिक पचास हजार रुपये होगी। बचा दस हजार रुपये। जिसके सूद पर तुम मेरे खेत पर मजदूरी करोगे। यदि तुम चाहो तो तुम्हारी बीबी मेरे घर में नौकरानी का काम कर सकती है। महीना तीन हजार रुपये दूँगा। साथ में दोनों को सुबह-शाम खाने को भी। यदि बीबी का तीन हजार रुपये नहीं ले जाओगे तो तीन महीने में नौ हजार रुपये हो जायेगा। बचा एक हजार रुपये में माफ कर दूँगा। फिर तुम कर्ज़ से आजाद हो जायोगे।’’
ब्रजमोहन के खेत में घासीराम बेगारी करने लगा। पत्नी उनके घर में नौकरानी। अब घासीराम की छुट्ठी सूर्यास्त होने पर नहीं होती है। सुबह साढ़े सात बजे के बजाय भोर ही खेत पहुँचना पड़ता है। घासीराम को भोर चार बजे से रात के ग्यारह बजे तक खेत में काम करना पड़ने लगा। ब्रजमोहन के आदेशानुसार शाम होने के बाद रात ग्यारह बजे तक और भोर चार बजे से सुबह तक खेत की सिंचाई करता है। पुष्पा के सौंदर्य पर मोहित ब्रजमोहन देर-सबेर घर छोड़ने और लाने मोटरसाइकिल से चला जाता है। ब्रजमोहन एक दिन रात के दस बजे पुष्पा को घर छोड़ने जाता है। तब तक पड़ोसी सो चुके हैं। घासीराम भी खेत में सिंचाई कर रहा है। ऐसे समय में पुष्पा के साथ यौन-शोषण करने की कोशिश करता है। पुष्पा के द्वारा विरोध करने पर ब्रजमोहन बच्चा को उठाकर कहता है, ‘‘यदि तुम मेरे साथ शारीरिक संबंध नहीं बनायेगी तो तुम्हारा बच्चा को मार डालूँगा। फिर भी तुम इंकार की तो बेघर कर दूँगा। घासीराम से सारी जमीन लिखवा चुका हूँ। जिसमें यह घर भी शामिल है। यदि तुम मुझे खुश करोगी तो तुम भी खुश रहोगी।’’
पुष्पा विवश होकर उनकी हवस का शिकार बनती है। ब्रजमोहन दो सौ रुपये फेंक कर चला जाता है। इस तरह घासीराम की पत्नी की इज्जत भी लूट ली जाती है। फिर हर रात ब्रजमोहन अपनी हवस का शिकार पुष्पा को बनाती है। एक दिन ब्रजमोहन की फैमिली बाहर चली जाती है। ब्रजमोहन बेड रूम से पानी मांगता है। जब पुष्पा किचन से गिलास में पानी लेकर ब्रजमोहन के पास पहुँचती है। तब ब्रजमोहन गिलास को पकड़कर टेबल पर रख देता है। फिर पुष्पा को बाँहों में भर लेता है। पुष्पा भी चंद पैसों के वास्ते अपना जिस्म ब्रजमोहन के नाम कर चुकी है। अब ब्रजमोहन अपने इच्छानुसार जब चाहे, तब अपने बाँहों में भर लेता है। लगभग दो घंटे के बाद जब पुष्पा ब्रजमोहन के बेड रूम से निकलकर किचन चली जाती है। तब देखती है कि बाल्टी में रखा गर्म मांड़ में मुन्ना डूबा हुआ है। पुष्पा रोती हुई मुन्ना को उठाती है। पुष्पा की रोने की आवाज सुनकर ब्रजमोहन किचन आ जाता है। मुन्ना का शरीर पूरा सफेद दिख रहा है। श्वास भी बंद हो चुका है। तभी ब्रजमोहन कहता है, ‘‘ये कैसे हुआ?’’
‘‘जब मैं पानी लेकर गयी थी। तब मुन्ना जमीन में सो रहा था।’’
‘‘देखो! जो हुआ सो भूल जाओ। और मेरी बात ध्यान से सूनो!’’
‘‘क्या?’’
‘‘तुम्हारे पति से कहना, मैं बाल्टी में मांड़ रखकर सब्जी काट रही थी। मेरे सामने ही मुन्ना खेल रहा था। अचानक मांड़ में जाकर गिर गया। मैं तुरंत मालिक को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए कही। मालिक झठ से मोटरसाइकिल निकाल लिये थे। लेकिन मुन्ना का श्वास ही बंद हो गया। मैं मुन्ना को बचा नहीं सकी। बोलकर रोने लगना। और यदि कुछ उल्टा-सीधा बोले तो यहाँ आ जाना। मैं आगे देख लूँगा।’’
देर रात जब घासीराम घर आया। तब पुष्पा ब्रजमोहन के बताए अनुसार ही सारी बात बता दी। घासीराम सुनकर जमीन में काटे गये वृक्ष की भाँति गिर जाता है। आज घासीराम जितना दुखी हुआ। उतना जमीन के छीनने पर भी नहीं हुआ था। सुबह मुन्ना का अंतिम संस्कार करके ब्रजमोहन का खेत चला गया। किंतु घासीराम का जी काम पर नहीं लगता है। दिन भर कुदाल पकड़कर रोता रहा। आज शाम होते ही घर आ जाता है। लेकिन रात को नींद नहीं आती है। तब घासीराम आँगन में सूखा पेड़ की भाँति खड़ा होकर पुत्र शोक में डूब जाता है। जब आधी रात को पुष्पा की नींद खुलती है। तब पति को खाट में सोया नहीं देखकर बाहर निकलती है। आँगन में एक सफेद आदमी को खड़ा देकर चिल्लाती हुई दरवाजा बंद कर लेती है। कुछ देर बाद पुष्पा साहस करके निकलती है। फिर धीरे-धीरे सामने जाती है। आँगन में कोई भूत-उत नहीं है। बल्कि उनका पति घासीराम खड़ा है। जिसके शरीर पर बर्फ की परत चढ़ गयी है। पुष्पा के द्वारा हिलाने पर पेड़ के सूखे पत्तों की तरह बर्फ टूटकर गिरता है। पुष्पा अपने पति को मूर्ति की भाँति पकड़कर घर के अंदर ले जाती है।
घासीराम भोर ही उठकर काम करने चला जाता है। अब प्रतिदिन रात के बारह-एक बजे घर आता है। पर आज सारा काम समाप्त होने पर रात आठ बजे घर आ जाता है। आँगन में ब्रजमोहन की मोटरसाइकिल खड़ी है। दरवाजा अंदर से बंद है। घासीराम क्रोध से लात मारकर दरवाजा तोड़ देता है। अंदर पुष्पा और ब्रजमोहन एक दूसरे से लिपटे हुए हैं। यह दृश्य देखकर घासीराम मारने के वास्ते डंडा लेने बाहर निकल जाता है। जब पुष्पा को मारने के लिए डंडा उठाता है। तब ब्रजमोहन आगे आकर डंडा पकड़ लेता है। फिर कहता है, ‘‘घासीराम! तू मेरे रहते पुष्पा को नहीं मार सकते हो। पुष्पा अब तेरी नहीं, मेरी हो चुकी है। यदि तुम यहाँ नहीं भी रहने दोगे तो भी कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं है। मैं अपने घर में एक कमरा दे दूँगा।’’
‘‘जा! जा! ले जा! ऐसी पत्नी के साथ मुझे भी नहीं रहना।’’
‘‘लेकिन एक बात याद रखना! यदि तुम मेरे खेत में काम करने नहीं जाओगे तो ये जो तुम्हारा घर है। ये मेरे नाम पर है। तुमको अपना घर छोड़कर जाना होगा।’’
घासीराम ब्रजमोहन की बात का कोई उत्तर नहीं देता है। चुपचाप खड़ा होकर देखता रहता है। क्योंकि आज कठिन समय में पत्नी पति का साथ निभाने से इंकार कर दी। फिर कुछ बोलने का औचित्य ही क्या रह गया है? ब्रजमोहन अपनी मोटरसाइकिल में पुष्पा को बैठाकर चला जाता है। घासीराम निराश होकर खाट में लेट जाता है। रात को शरीर आग जैसा तपने लगा। लगता है आज घासीराम को बुखार नहीं महाबुखार आ गया है। वह रात भर बुखार से तड़पता रहा। सुबह उठकर ब्रजमोहन का खेत चला जाता है। लेकिन काम करने में असमर्थ घासीराम पेड़ के नीचे लेटा हुआ है। यह देख ब्रजमोहन कहता है, ‘‘क्या रे घासीराम? तू काम करने के बजाय आराम कर रहा है। जमीन और बीबी तो खो बैठा। अब ऐसा करेगा तो घर भी खो बैठेगा। चुपचाप काम कर! समझा!’’
‘‘मालिक, मैं ठीक से खड़ा नहीं हो पा रहा हूँ। मेरी तबीयत खराब है।’’
‘‘तबीयत खराब होने का बहाना मत बना। चुपचाप काम कर! वरना!’’
‘‘मालिक, मैं भी इंसान हूँ। कोई मशीन नहीं हूँ। मशीन में भी तेल डालना पड़ता है। तब चलती है। मशीन के खराब होने पर मिस्त्री के पास ले जाना पड़ता है। मुझे भी डॉक्टर के पास ले जाने की आवश्यकता है। वरना, मैं मर जाऊँगा। दया करके कुछ पैसा देकर एक मजदूर साथी को ले जाने की आज्ञा दे दीजिए।’’ घासीराम की आवाज लड़खड़ाने लगी।
‘‘चलो! चलो! काम करो! कोई बहाना नहीं चलेगा!’’ कहता ब्रजमोहन मुसकराते हुए घर की ओर चला जाता है।
ब्रजमोहन के जाते ही दो मजदूर साथी घासीराम के पास आ जाते हैं। घासीराम का शरीर आग की भाँति ताप रहा है। आँख बंद कर चुका है। मुँह से घड़, घड़……… की आवाज आ रही है। मजदूर के द्वारा पानी के छींटा मारने पर आँख खोलता है। फिर हमेशा-हमेशा के लिए आँखें बंद कर लेता है।

 

डॉ. मृत्युंजय कोईरी

युवा कहानीकार द्वारा, कृष्णा यादव करम टोली (अहीर टोली) पो0 - मोराबादी थाना - लालापूर राँची, झारखंड-834008 चलभाष - 07903208238 07870757972 मेल- mritunjay03021992@gmail.com