लघुकथा

परहेज

“बहू, आज नाश्ते में छोले भठूरे बनाओ ना, बड़े दिन हुए खाये नही हैं” नीना की सास  रेवती ने फरमाईश की। नीना अपने पति सुरेश  की ओर देखते हुए कहने लगी “अम्मा,, अपने बेटे से पूछ लिजिए कि आपको नाश्ते में ऐसी हेवी चीजें देनी है कि नहीं, वरना आप तो खा लेतीं हैं, जब आपको अपचन होती है तो हमें ही परेशानी उठानी पड़ती है, आपको अस्पताल ले जाने में औरआपके बेटे को आफिस से बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिलती है, अब आपकी उम्र खाने में  कुछ परहेज करने वाली हो गयी है”। नीना ने रेवती का सुना दिया और आंखों से इशारा किया कि सुरेश भी अपनी माँ से खाने में परहेज के लिए बोले.
सुरेश के  बोलने से पहले ही रेवती बोल पड़ी “तुमने जो कहा वो सब तो ठीक है बहू ! हम बूढ़े बुढ़िया को तो तुम लोग खाने में परहेज करवा लेते हो ,लेकिन हमारी सेहत की लिए तुम लोग जली कटी सुनाने से कितना परहेज करते हो? जरा कड़वा बोलने में तुम भी परहेज कर लिया करो, मेरी उम्र कड़वी बातों से भी बचने वाली हो गयी हैं।” रेवती की बात का बेटा बहू के पास कोई जवाब नहीं था।
— अमृता राजेन्द्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़