कविता

अनमोल प्रेम

 

जीवन में बस प्रेम ही अनमोल है

बाकी सब की कीमत कुछ न कुछ जरूर है।

प्रेम की कोई सीमा नहीं है

प्रेम का कोई दायरा, कोई परिधि नहीं होती।

दुनिया के हर रिश्ते में प्रेम होता है

मां बाप का संतान से

भाई का बहन से, बहन का भाई से

दादा, दादी, नाना, नानी का

अपने नाती नातिनों, पोते, पोतियों से

चाचा चाची,बुआ, फूफा,मामा मामी का प्रेम भी

अनमोल ही तो होता है,

अपनों का अपनों से ही होता है अनमोल प्रेम।

प्रेम खून के रिश्तों में या प्रेमी प्रेमिकाओं में ही नहीं होता,

भावनात्मक और आत्मीय रिश्तों में भी होता है

निश्छल, निर्मल अनमोल प्रेम

जो वास्तविक रिश्तों को भी मात दे जाते हैं,

अनमोल प्रेम की नई दास्तां संग इतिहास लिख जाते हैं।

आज जब खून के रिश्ते भी बेपरवाह होते जा रहे हैं

अनमोल प्रेम की बदसूरत तस्वीरें बना रहे हैं।

तब भावनाओं और मानवीय रिश्ते

अनमोल प्रेम की नई गाथा रच रहे हैं

अनमोल प्रेम को शर्मसार  होने से बचा रहे हैं

अनमोल प्रेम को अमरता प्रदान कर इतिहास रच रहे हैं

अनमोल प्रेम का महत्व समझा रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921