कविता

शांति की राह में…

तलवार से अगर जीत मिलता तो
सबके हाथों में तलवार होते हैं,
मनुष्य नहीं, हर जगह हिंस जंतु रहेंगे।
छीनना, झपटना, स्वार्थ का रूप है
हिंसा कभी भी स्वीकार्य नहीं है
‘विजय’ तलवार व बंदूक से
कभी भी नहीं हो सकता कि
‘जीत’ आंतरिक परिवर्तन का एक रूप है
शांति, अहिंसा, भाईचारा बड़ी देन है
शोध, परिशोध, आचरण के बल पर
समाज शास्त्रीय विवेचन का फल है वह
तटस्थता, मध्यम मार्ग भारत का है,
लौकिक तत्व हमारी अमूल्य निधि है
भाईचारे का भव्य संदेश एक चुनौती है
संसार को यही संदेश हम देते आये हैं-
प्रेम, सद्भाव, परोपकार से मिलती है
सुख – शांति इस मानव जग में
गर्व – दंभ से, अहंमान्यता से नहीं होगा,
समाज का अर्थ है ‘सम’ होने का भाव
समता – बंधुता का विशाल आकार
स्वीकार्य है सबका मूल्य, सबका विकास
सबका सम समम्मान, सबका आदर
यहाँ न कोई नीच है और न कोई ऊँच
परिस्थितिवश हरेक का अपना विचार
वेश-भूषा, अपना आचरण होता है
एक दूसरे को समझना ही विकास है
अग्रसर हो जावें मानव जग में मनुष्य बनकर
आगे का कदम बढ़ाते चलें अपने विवेक से
खुल जाएँ नयी दिशाएँ शांति की राह में।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।