शांति की राह में…
तलवार से अगर जीत मिलता तो
सबके हाथों में तलवार होते हैं,
मनुष्य नहीं, हर जगह हिंस जंतु रहेंगे।
छीनना, झपटना, स्वार्थ का रूप है
हिंसा कभी भी स्वीकार्य नहीं है
‘विजय’ तलवार व बंदूक से
कभी भी नहीं हो सकता कि
‘जीत’ आंतरिक परिवर्तन का एक रूप है
शांति, अहिंसा, भाईचारा बड़ी देन है
शोध, परिशोध, आचरण के बल पर
समाज शास्त्रीय विवेचन का फल है वह
तटस्थता, मध्यम मार्ग भारत का है,
लौकिक तत्व हमारी अमूल्य निधि है
भाईचारे का भव्य संदेश एक चुनौती है
संसार को यही संदेश हम देते आये हैं-
प्रेम, सद्भाव, परोपकार से मिलती है
सुख – शांति इस मानव जग में
गर्व – दंभ से, अहंमान्यता से नहीं होगा,
समाज का अर्थ है ‘सम’ होने का भाव
समता – बंधुता का विशाल आकार
स्वीकार्य है सबका मूल्य, सबका विकास
सबका सम समम्मान, सबका आदर
यहाँ न कोई नीच है और न कोई ऊँच
परिस्थितिवश हरेक का अपना विचार
वेश-भूषा, अपना आचरण होता है
एक दूसरे को समझना ही विकास है
अग्रसर हो जावें मानव जग में मनुष्य बनकर
आगे का कदम बढ़ाते चलें अपने विवेक से
खुल जाएँ नयी दिशाएँ शांति की राह में।