मुक्तक/दोहा

मुक्तक

गौरवान्वित आज भारत, देखकर संसद भवन को,
सत्य की यह गौरवगाथा, धर्म के फैलते परचम को।
धर्म दंड की स्थापना, बदलते भारत की आन बान,
विश्व गुरू भारत सदा, फहरा रहा तिरंगा गगन को।
स्थापत्य शैली इसकी अनूठी, जग आतुर हो देखता,
पौराणिक आधुनिकता का संगम, सम्मिश्रण को देखता।
धर्म की स्थापना, विज्ञान को आधार बनाकर,
विकसित भारत का सपना, आधुनिक भवन में देखता।
रोक सकता अब नही, बढ़ते कदम भारत के कोई,
जानता है विश्व सारा, जागता भारत सोया न कोई।
कह रहे थे विकासशील, समझ गये विकसित यह,
दहाड़ते शेरों का भारत, धमका सकता नहीं कोई।
— डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन