सामाजिक

माता पिता

माता पिता एक सबसे पवित्र, निष्पक्ष, निस्वार्थ रिश्ता है जिसमे केवल प्यार, अपनापन, त्याग की भावना निहित होती है।जैसा कि समाज में प्रचलित शब्दो- माता पिता,सीता राम,सिया राम,लक्ष्मी गणेश आदि नामो से स्पष्ट हो जाता है कि समाज में स्त्री का स्थान पहला है, स्त्री सम्मानित है, उसके बाद पुरुष का स्थान माना जाता है ।

अगर कोई व्यक्ति केवल अपने जीवन काल पर गौर करे तो स्पष्ट हो जाएगा मां का प्यार, दुनियां के किसी रिश्ते के प्यार से नौ माह ज़्यादा है। मां ने हमे जन्म देने के लिए कई महीनो तक अपनी इच्छा को हमारी ख़ुशी के लिए त्याग दिया होगा। मां  ही उस असहनीय दर्द के साथ  हमे जन्म दे कर मुस्कुराई होगी। हमारे पालन पोषण में मां का योगदान अतुल्य हैं। जितना प्यार मां की गोद में बचपन में मिला होगा , उतना पिता के कंधे पर ना मिला होगा। मां ने तो कई बार अपना भोजन किए बिना, हमारे आहार भोजन का इंतज़ाम किया होगा।

मगर पिता का स्थान मां के बाद सर्वोच्च होता हैं। जिसके  अति सूक्ष्म योगदान , हमारे साकार होने कि नीव बनी। हमारे इस पृथ्वी पर पदार्पण  से लेकर अपने पूरे जीवन काल तक , हमेशा माता पिता अपने बच्चों कि हर इच्छा पूरी करने से लेकर, बच्चो के स्वास्थ, अच्छी पढ़ाई लिखाई, नौकरी, फिर शादी व्याह की तैयारियों में हमेशा व्यस्त रहते हैं। यू कहे की , बच्चों के जन्म के बाद से माता पिता की हर सोच , हर कार्य,हर विचार विमर्श अपने बच्चों के इर्द गिर्द घूमती रहती है। शायद माता पिता को अपने खाने पीने का शौक, मनोरंजन, फैशन, घूमने फिरने की इच्छा को सोचने का समय नहीं मिलता,  या बच्चों को घूमने, खिलाने, खुश रखने में, वा उनका भविष्य उज्जवल करने के जुगत  में अपनी सभी चीजो को २०-२५ सालो तक टालते रहते रहते, माता पिता का आधे से अधिक जीवन निकल जाता हैं।और तब तक नौकरी से सेवा निवृत्त होने का समय  आने लगता हैं।

हम सभी को याद दिलाना चाहता हूं कि इस जीवन के अच्छे कर्मों को फल इसी जीवन में अवश्य मिलेगा। अतः हर व्यक्ति स्वतः सही रास्ते पर चले, सही कार्य करें,सही परामर्श दे, सही मार्गदर्शन करें। परन्तु केवल इतना बोल देना अधूरा ही रह जाएगा और भ्रम भी पैदा करेगा  कि सही क्या है, गलत क्या है। सही और गलत एक ही सिक्के के दो पहलू है। इस संदर्भ में, एक सीधा फॉर्मूला मेरे संज्ञान में आता हैं कि आप ” कुछ भी बोलने से पहले अथवा कुछ करने से पहले आप एक पल आंख बंद करके सोचे, की क्या आप  अपनी मां ( यदि जीवित होती) तो उनके सामने इन शब्दों को बोलने पर/ इस कार्य को मां के सामने करने पर, अगर आपकी मां ख़ुश होती, तो ये शब्दों का उपयोग / ये कार्य आपके लिए सही है,आप इन शब्दों का प्रयोग या अपित कार्य खुल कर सभी के सामने कर सकते है। अगर आपकी मां नाखुश होती,तो ये आपके लिए गलत है”

चुकीं इस प्रथ्वी पर सभी लोगो को किसी मां ने जन्म दिया है और सभी यह जानते कि उनकी मां कब खुश होती, कब नाराज़ होती। रही बात माता पिता के बुरे होने की बात , जो समाज के कुछ लोग कहते सुने जाते है, वे केवल अज्ञानी है,अपनी मूर्खता का परिचय देते है, उनकी सोच बुरी हो सकती हैं।  माता पिता कभी ग़लत हो ही नहीं सकते। समय बीत जाने पर, आर्थिक हालात बदलने, परिस्थितियां बदल जाने पर माता पिता के निर्णय को गलत कहना अनुचित होगा।

आप सौभाग्यशाली हैं कि माता पिता के सौजन्य से आप इस पृथ्वी के आकर्षण को देख पा रहे हैं।आप  सन्तान होने के कारण माता पिता के संघर्ष के दिनो के हालात की कल्पना भी नहीं कर सकते। हां ,आप आपने वर्तमान आर्थिक परिस्थिति एवम् सामाजिक सुविधाओं के सापेक्ष अपने बच्चों के लिए जुटा पाने वाली सुख सुविधाएं का आंकलन कर सकते हैं कि क्या आप अपनों को वांछित स्तर पर ला सकें है, जिसके सपने आपने देखें हैं।

दुबारा याद दिलाना चाहता हूं कि माता पिता एक limited edition offer की तरह है, हमेशा नहीं मिलेंगे। अतः उन्हें सबके सामने, मुख्य रूप से अपने बच्चो के सामने उचित आदर सत्कार दे, क्योंकि आपके बच्चे बताने से अधिक ,देख कर सीखते है। आपके बच्चे बड़े हो कर आपके साथ वहीं बर्ताव करेंगे, जो आपने बड़ो के साथ किया होगा। अच्छे संस्कारों का पालन करते करते आदत हो जाती हैं,जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती हैं।

वर्तमान नई पीढ़ी से अनुरोध है कि कभी एकांत में सोचे कि क्या आपने माता पिता के

१-छोटे छोटे पर्सनल कार्यों में हाथ बटाया

२-घर में कभी फुरसत में उनके साथ बैठ कर बातें की है

३- कभी उनके दिल कि बात जानने की कोशिश की

४- कभी उन्हें अपने हाथों से एक निवाला खिलाया (जीवन साथी वा बच्चों को हाथ से ज़रूर खिलाया होगा)

५- कभी उनकी ज़रूरत जानने कि कोशिश कि

(अपनी जरूरतें  उन्हें ज़रूर बताई होंगी)

६- कभी घर में या बाहर हाथों से सहारा दिया होगा

( जीवन साथी  वा बच्चो को बिना कहे हाथ से सहारा ज़रूर दिया होगा)

८- कभी क्या उनकी तारीफ सामने की होगी

( जीवन साथी  वा बच्चो की झूठी तारीफ ज़रूर की होंगी)

९- क्या कभी उनकी वर्तमान सेहत पर अपनी चिंता उनसे व्यक्त की होगी

(परिवार में अन्य लोगो पर  चिन्ता ज़ाहिर की होगी)

वे सभी लोग सौभाग्य शाली हैं , जिनके माता पिता जीवित है अपनी व्यस्त दैनिक कार्यों से समय निकाल कर माता बिपिता के प्रति स्नेह, आभार, सत्कार, मनोरंजन , सहारा देने का अवसर हाथ से ना जाने दे। अन्यथा समय निकल जाने पर केवल पछतावा रह जाता है। पर यह सब बाते अक्सर समय निकाल जाने पर यादों के रूप में सताती हैं। माता पिता की सेवा करना, उनके विचारों का सम्मान करना, ईश्वर पूजा का ही रूप है।

परिवार वा समाज की सभी बहने, बेटियां, किसी की पत्नी, बहू, मां बनेगी। इसी लिए शुरू से इन भावी माताओं को प्यार,आदर, सत्कार देने की भावना के साथ एक सफल समाज की नींव डाले। परिवार वा आस पास के सभी उम्र में बड़े लोगो  को माता पिता तुल्य मानते हुए, उनके इनउम्र की पाठशाला से प्राप्त सामाजिक ज्ञान वा निष्पक्ष विचारों से लाभान्वित होते हुए वर्तमान में ही एक अच्छे समाज की आधार शिला रखे।

— अनूप कुमार श्रीवस्तव

अनूप कुमार श्रीवास्तव

39 वर्षों की सेवा के बाद इलाहाबाद बैंक से मुख्य प्रबंधक के रूप में अवकाशप्राप्त। लखनऊ में निवास कर रहे हैं। मो.- 8795831256 ईमेल- anoopkumar1256@yahoo.com