गीत/नवगीत

यादें

राहों को तेरी छोड़ कर  मैं
इक ग़ज़ल बन गई……….।।२।।
बफाओं की लकीरों में मैं उलझकर रह गई
तेरी यादों के साये में,मैं झील बन गई
उतरती हुई नदियों से तुमसे बिछड़ती रही
सपनों की माला में, मैं खुद को गूंथती रही
राहों को तेरी छोड़ कर मैं
इक ग़ज़ल बन गई………..।।२।।
वो लम्हें बफाओं के जाने कहां खो गए
ढ़लती उम्र में अब हम शिकायत कर गए
ढ़लती हुई सांसों को हम अब अपनी कैसे छुपाते
हाल दिल को कब और कैसे सुनाते
राहों को तेरी छोड़ कर मैं इक ग़ज़ल बन गई..…………।।२।।
अश्कों को छुपाते -छुपाते  मैं इक समन्दर बन गई
तेरी यादों की मैं सरगम छेड़ती रह गई
खारे पानी में,मैं किनारा ढूंढती रही
तेरी यादों की नया संग तैरती रही
राहों को तेरी छोड़ कर मैं इक ग़ज़ल बन गई…

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)