क्षणिका

काफी है

मुश्किलों को पार करने के लिए,
पिता की छाया ही काफी है,
अपनी पहचान बनाए रखने के लिए,
पिता का सरमाया ही काफी है।
कंधे पर बिठाकर कैसे मेले दिखाए,
आइसक्रीम खिलाना ही काफी है,
चलना सिखाया, जब कदम डगमगाए,
मन में याद रखना ही काफी है।
आंधी-तूफान में कैसे वे दीवार बने,
हर मुश्किल से उबारना ही काफी है,
आफत से बचाने को दुधारी तलवार बने,
हमेशा मन में बसाना ही काफी है।
‌(पितृ दिवस 18 जून पर विशेष)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244