कविता

देशभक्ति की विडंबना

ऐसा हमारे देश में ही हो सकता है
कि देशप्रेम और देशभक्ति का
चीख चीखकर प्रमाण दिया जाता है,
और फिर देश में आग लगवाया जाता है
फिर शान्ति की अपील और
भाईचारा बनाए रखने का
दिखावटी पाठ बढ़ाया जाता है,
अपनी कथित राजनीति को खूब चमकाया जाता है
प्रभावित जनता का सबसे बड़ा रहनुमा
सबसे बड़ा हितैषी खुद को दिखाया जाता है।
शांति मार्च, अनशन और न्याय के लिए
रैलियां, धरना प्रदर्शन, हड़ताल किया जाता है।
बुझती आग में घी डाला जाता है,
लाचारों बेबसों का मजाक उड़ाया जाता है
लाशों पर राजनीति का गंदा खेल
बड़ी शान से देर तक खेला जाता है,
देश का ईमानदार बेटा होने का खूबसूरत अभियान
बड़ी बेशर्मी से चलाया जाता है।
देशभक्त होने का ये अभियान
आये दिन जगह जगह ,शहर शहर
नगर नगर गांव गांव चलते ही रहते हैं,
जिसे हम आप सब रोज ही तो देखते हैं।
ईमानदार, देशप्रेमी, देशभक्त हैं जो
वो असहाय, लाचार बने
खून का घूंट पीकर रह जाते हैं।
देशप्रेम और देशभक्ति की खातिर
चुपचाप अपना फ़र्ज़ निभाते हैं
और फिर एक दिन गुमनामी की मौत मरकर
अपनी खूबसूरत दुनिया छोड़ जाते हैं,
अपने परिवार की नजरों में ही वे देशभक्त रह जाते हैं
बदनामी और अभाव अपने पीछे छोड़ जाते हैं
क्योंकि परिवार के लिए वे महज
अपने देशभक्त होने की
किस्से कहानियां ही छोड़ जाते हैं।
बेशर्म राजनीति के चक्कर में
अपनी पहचान तक को जाते हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921