कविता – गुमान
एक पल में तेरे गुरूर का
लुट जायेगा तेरा अभिमान
पाप का घड़ा भर जाने दो
मिट जायेगा तेरा अरमान
मतलब की है ये दुनियॉ
चन्द दिनों का है तेरा मान
जब मतलब निकल जायेगा
भूल जायेगा जग तेरा नाम
आज नहीं तो कल तेरा भी
खत्म हो जायेगा सब सम्मान
जब दौलत निकल जायेगी
अपने भी भूल जायेगा पहचान
मत दिखा रसूख अय मुर्ख यहाँ
मत कर तूँ मिथ्या अभिमान
पानी का है ये बुलबुला सब
फूट जायेगा सब तेरा ये गुमान
क्यूं हँसता है किसी की मजबूरी
हर शख्स है यहाँ पर कंगाल
प्रेम का दौलत जमा कर। ले
अमर कर देगा तेरा भी नाम
— उदय किशोर साह