गीत
पाँव में अपने
कुल्हाड़ी मारकर
कब तक बचोगे?
पाखियों के नीड़
उजड़े कट गए तरु।
रो रहे हैं ठूँठ
धरती हो गई मरु।।
आत्महंता बन
जीना न तुमको
क्या कुछ रचोगे?
क्यों उठेंगे घन
पावस में धरा।
चीखते चिल्ला रहे
हाय ! मैं तो मरा।।
पौध रोपोगे
नहीं, मूढ़ मानव
आतप तचोगे?
छाँव में बैठे
पखेरू भैंस गायें।
आसरा उनका
छिना, वे तड़पड़ायें।।
उतर जाएँगे
तुम्हारे आवरण
बहुरंग चोले।