कविता

चलो… दुनिया को देखें

कठिन होता है चलना
जहाँ रास्ता ठीक नहीं है,
पत्थर-कंकड, काँटों के बीच चलना
मजबूरी होती है आम जनता का
रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ना
सवाल है, जिंदगी एक प्रश्न है,
टकराते हैं पत्थर पैरों को,
चप्पल पहनने पर भी चुभ जाती हैं
स्वभाव सिद्ध तीखी काँटे,
चीखते-चिल्लाते, दुःख-दर्द को सहनते
आसान नहीं है आगे के निकल जाना
रास्ता जो भी बने जग में वह
पीड़ित – उन कड़ी मेहनतों का होता है
देन है वह बहुत बड़ी, दुनिया को
मान – सम्मान मिलता है उसे
‘श्रम जीवि’, ‘दुःख का अधिकारी’
उस रास्ते का अधिकारी तो
सुखी – संपन्न बन जाते हैं
हर जगह गमला रखे ठीक-ठ्याक से
अपनी चेहरा दिखाते हैं
दुःख का अधिकारी उसी रास्ते में
भीख माँगते नज़र आते हैं
चलो.. दुनिया को देखें
अपनी आँखों से।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।