गजल
दिल से दिल की दूरी चार कदम ही हैं
झूठा ही सही दिल का भरम रहने दो
सिर पर मेरे दस्त -ए-करम रहने दो
दिल में बुलंद इश्क़ का अलम रहने दो
दूर एक हुजूम है खोना जाऊँ मैं कहीं
खर्च करने को पास मेरे दरम रहने दो
यूँ तो खौफ दिल में खुदा का पलता है
बस दिल न दुखे सब सितम रहने दो
हथियार का काम कलम खूब करती है
इस सच से माहौल को गरम रहने दो
मज़लूम के हिस्से का रकम रहने दो
सदा मेहनत की खाएंगे धरम रहने दो
रोटी सेंक सको अपनी उमम रहने दो
बीच सबके प्यार है अब रग़म रहने दो
— सपना चन्द्रा