कविता

ईमानदारी से छोड़ दो भ्रष्टाचार

चकरे खिलाकर बदुआएं समेटी करके भ्रष्टाचार 

परिवार सहित सुखी रहोगे जब छोड़ोगे भ्रष्टाचार 

अब भी सुधर जाओ मत करो इनकार 

ईमानदारी से छोड़ दो भ्रष्टाचार

धन रहेगा नहीं दुखी करके निकलेगा यह भ्रष्टाचार 

बच्चे को एक्सीडेंट में खोए कारण था भ्रष्टाचार 

ऊपरवाला देख रहा है नहीं है वह लाचार 

बिना आवाज़ की लाठी मारी किया था भ्रष्टाचार 

चकरे खिलाकर बदुआएं समेटी करके भ्रष्टाचार 

परिवार सहित सुखी रहोगे जब छोड़ोगे भ्रष्टाचार 

अब भी सुधर जाओ मत करो इनकार 

ईमानदारी से छोड़ दो भ्रष्टाचार 

जीवन में दुखों का कारण का भ्रष्टाचार 

लाखों करोड़ों खर्च किए नहीं हुआ उपचार 

परिवार बिखर गया बस कारण है भ्रष्टाचार 

जैसी करनी वैसी भरनी आदिकाल से सत्य विचार 

भारत में अब आ गई है नवाचारों की बौछार 

डिजिटल पारदर्शी नीतियों से हो गए हो लाचार 

चकरे खिलाने का काम अब छोड़ दो ये औजार

ईमानदारी से छोड़ दो भ्रष्टाचार 

— किशन सनमुख़दास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया