आओ.. दुनिया को देखें
कैद हो तुम, अंध विश्वासों के अधीन,
वहीं, चार दीवारों के अंदर!
कितने युगों तक, भ्रम में रहोगे!!
यथार्थ से दूर, विविधता के विकारों में,
जिंदगी वह एक झूठ है, पहचानो मनुष्य को,
परस्पर सहयोग से चलती है यह साँस
हुष्ठ-पुष्ठ, बलिष्ठ है रक्त- मांस का यह शरीर,
आओ भाई, शिक्षा के इस माहौल में
देखो, दुनिया कितना सुंदर है बाहर
प्रेम, त्याग, समर्पण की बगिया में
खिले उन रंग-बिरंगे पुष्पों के बहार देखो
अमृत से बढ़कर है उसका स्वाद लो,
गले मिलो, हरेक को प्यार से,
पुलकित मन को टटोलकर देखो
पता चलेगा जरूर, अब तक
खोया है क्या, तुमने अपने जीवन में
भाईचारे के जग में, प्रेम का सुगंध,
शीतलता दे रही है, जीवन पथ में
ठहरो मानव मूल्यों की उस छाया में,
स्वर्ग का विचार लगेगा बेकार
करोडों जनता की इस दुनिया में
भविष्य की चिंता से, डर से,
भ्रम के वश में, सुख-भोग के लालच में
दूसरे के श्रम को लूटना तथा
लाखों – करोड़ों रूपये, अनुचित तरीके से जमा कर अपने को जग का स्वामी मानना
असभ्य है, बर्बरता है, पाखंड है,
आदिम अवस्था का वह दूसरा नाम है,
छीनो मत, धोख मत दो किसी का,
अन्याय, अधर्म, अत्यचार अमानुषिक है,
जग का सार है त्याग, समर्पण
मन की परिणति है सहकारिता
दीन-दुःखित, असहाय जनता को
अपने साथ ले जाने से, मिलेगी तृप्ति
होगी उनकी सेवा में आनंद की अनुभूति
मिलेगी मन की अनंत, अपार शांति।