कविता

आओ.. दुनिया को देखें

कैद हो तुम, अंध विश्वासों के अधीन,
वहीं, चार दीवारों के अंदर!
कितने युगों तक, भ्रम में रहोगे!!
यथार्थ से दूर, विविधता के विकारों में,
जिंदगी वह एक झूठ है, पहचानो मनुष्य को,
परस्पर सहयोग से चलती है यह साँस
हुष्ठ-पुष्ठ, बलिष्ठ है रक्त- मांस का यह शरीर,
आओ भाई, शिक्षा के इस माहौल में
देखो, दुनिया कितना सुंदर है बाहर
प्रेम, त्याग, समर्पण की बगिया में
खिले उन रंग-बिरंगे पुष्पों के बहार देखो
अमृत से बढ़कर है उसका स्वाद लो,
गले मिलो, हरेक को प्यार से,
पुलकित मन को टटोलकर देखो
पता चलेगा जरूर, अब तक
खोया है क्या, तुमने अपने जीवन में
भाईचारे के जग में, प्रेम का सुगंध,
शीतलता दे रही है, जीवन पथ में
ठहरो मानव मूल्यों की उस छाया में,
स्वर्ग का विचार लगेगा बेकार
करोडों जनता की इस दुनिया में
भविष्य की चिंता से, डर से,
भ्रम के वश में, सुख-भोग के लालच में
दूसरे के श्रम को लूटना तथा
लाखों – करोड़ों रूपये, अनुचित तरीके से जमा कर अपने को जग का स्वामी मानना
असभ्य है, बर्बरता है, पाखंड है,
आदिम अवस्था का वह दूसरा नाम है,
छीनो मत, धोख मत दो किसी का,
अन्याय, अधर्म, अत्यचार अमानुषिक है,
जग का सार है त्याग, समर्पण
मन की परिणति है सहकारिता
दीन-दुःखित, असहाय जनता को
अपने साथ ले जाने से, मिलेगी तृप्ति
होगी उनकी सेवा में आनंद की अनुभूति
मिलेगी मन की अनंत, अपार शांति।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।