धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

रक्षाबंधन का सही अर्थ पहचाने

वर्तमान में महिलाओं के साथ अभद्रता पूर्ण व्यवहार ने रक्षासूत्र के मायनो को बिखेरा है।जो बेहद शर्मनाक है।रक्षाबंधन किसलिए मनाते है।रक्षासूत्र एक विश्वास का धागा जो दूर रहकर हर साल राह देखता रक्षाबंधन की ।दूर बसे,विदेशो में बसे ओर सीमाओं पर डटे भाइयों की सूनी कलाइयों में बंधने की राह देखते धागे स्नेह और विश्वास के संग चिठ्ठयों में बैठ कर आते ।बहना की तस्वीर झलक जाती औऱ आशीर्वाद के फूल आंसूं के रूप में गिरने लग जाते।भाई बहनों का त्यौहार रक्षा बंधन रक्षा कवच के रूप में बंधे धागे से बिना बोले चिठ्ठियों से ,संदेशो से दुख सुख बता कर जाता है।बहनें भी अपने भाइयों से सहायता की अपेक्षा रखती।रक्षा बंधन में रिश्ते  की अहमियत ताउम्र तक बरकरार रहती।जिनकी बहनें औऱ जिनके भाई नही होते वे भी ऊपर वाले कि कृपा से रक्षाबंधन पर्व पर बनाये गए रिश्तें को जिंदगी भर निभाकर अपनी बहन की रक्षा का कर्तव्य निभाते आ रहे है।भारतीय संस्कृति की परंपरा पर गर्व है।समयानुकूल दूर जा बस जाने व  किसी कारण  वश ना जा पाने की वजह से दुख तो अवश्य होता किन्तु रक्षाबंधन की शुभकामनाएं बहनो भाइयों के लिए चिठ्ठियों और मोबाइल संदेशो के बीच रक्षाबंधन पर्व पर बचपन से अब तक का सफर की छोटी छोटी घटनाओं को एक एलबम के रूप में दर्शन करवा कर दूरियों को परे रख यादों को ताजा कर जाती है।बहनों भाइयों की छोटी छोटी नाराज़गी को रक्षाबंधन के स्नेह का भेजा या बांधे जाने वाले धागा’राखी’,क्षण भर में छूमंतर कर सुकून का वातावरण निर्मित कर देता है।आज भी मेरी आँखों मे बचपन की यादों के आंसू डबडबाने लग जाते है | ख़ुशी के त्यौहार पर रंग बिरंगी राखी अपने हाथो मे बंधवाकर , माथे पर तिलक लगवाकर  ,मिठाई एक दुसरे को खिलाकर बहन की सहायता करने का संकल्प लेते है तो लगने लगता है कि पावन त्यौहार रक्षा बंधन  और भी निखर गया  है और मन  बचपन की  यादों को भी फिर से  संजोने लग गया  है|एक विश्वास का धागा जो दूर रहकर हर साल राह देखता रक्षाबंधन की ।दूर विदेशो में बसे ओर सीमाओं पर डटे भाइयों की सूनी कलाइयों में बंधने की राह देखते धागे स्नेह और विश्वास के संग चिठ्ठयों में बैठ कर आते ।बहना की तस्वीर झलक जाती औऱ आशीर्वाद के फूल आंसूं के रूप में गिरने लग जाते।भाई बहनों का त्यौहार रक्षा बंधन रक्षा कवच के रूप में बंधे धागे से बिना बोले चिठ्ठियों से ,संदेशो से दुख सुख बता कर जाता है।बहनें भी अपने भाइयों से सहायता की अपेक्षा रखती।रक्षा बंधन में रिश्ते की अहमियत ताउम्र तक बरकरार रहती।जिनकी बहनें औऱ जिनके भाई नही होते वे भी ऊपर वाले कि कृपा से रक्षाबंधन पर्व पर बनाये गए रिश्तें को जिंदगी भर निभाकर अपनी बहन की रक्षा का कर्तव्य निभाते आ रहे है।भारतीय संस्कृति की परंपरा पर गर्व है।समयानुकूल दूर जा बस जाने व किसी कारण वश ना जा पाने की वजह से दुख तो अवश्य होता किन्तु रक्षाबंधन की शुभकामनाएं बहनो भाइयों के लिए चिठ्ठियों और मोबाइल सं देशो के बीच रक्षाबंधन पर्व पर बचपन से अब तक का सफर की छोटी छोटी घटनाओं को एक एलबम के रूप में दर्शन करवा कर दूरियों को परे रख यादों को ताजा कर जाती है।बहनों भाइयों की छोटी छोटी नाराज़गी को रक्षाबंधन के स्नेह का भेजा या बांधे जाने वाले धागा’राखी’,क्षण भर में छूमंतर कर सुकून का वातावरण निर्मित कर देता है ।स्वरचित पंक्तियां-

कभी चिट्ठियां घर को आती
अक्षरों को आंसू से फैला जाती
फैले अक्षरों की पहचान
ससुराल के निर्वहन को बतलाती।
पिता की अनुपस्थिति में
भाई लाने का फर्ज निभाता
तो कभी ना आने पर
वही राखी बंधवाता।
बिदा लेते समय
बहना की आँखे 
आंसू से भर जाती
भाई की आँखें
बया नही करती बिदाई।
सिसकियों के स्वर को
वो हार्न में दबा जाता
राखी का त्यौहार पर
भाई बहन के घर जाता।
रेशम की डोर में होती ताकत
संवेदनाओं को बांध कर
बहन के सुख के साथ
रक्षा के सपने संजो जाता।

— संजय वर्मा दृष्टि’

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /antriksh.sanjay@gmail.com 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच