उम्मीद का दीप
एक मंच पर प्रदत्त शब्द दिया गया था- ** कैसे मुस्कुराऊँ**. उस पर 723 कामेंट्स आए और लगभग सभी ने नकारात्मक कविताएं लिखी थीं. 1967 में जब हम एम.ए. कर रहे थे, राजस्थान यूनिवर्सिटी के रीडर प्रोफेसर सरनाम सिंह अरुण जी ने एक बात कही थी- “आपकी रचनाएं सदैव सकारात्मक होनी चाहिएं. नकारात्मक रचनाओं के आखिर में भी ऐसी पंक्तियां अवश्य होनी चाहिएं, कि पाठक की उम्मीद का दीप प्रज्ज्वलित रहे.” सो हमने सकारात्मक कविता लिखी- “मुस्कुराने का बहाना”.
अनेक सकारात्मक प्रतिक्रियाएं आईं. एक पाठक ने बहुत सुंदर काव्यमय, पर नकारात्मक कामेंट लिखा. हमे तुरंत उनको लिखा- “इतने निराश मत होइए, उम्मीद का दीप जलाए रखिए. इसीलिए ही हम सकारात्मक रचनाएं लिखते हैं, कि पढ़ने वाले को हौसला मिले. आप बहुत अच्छा लिखते हैं. कोई सकारात्मक रचना लिखकर हमारे मैसेंजर पर भेजिए, हम अपने ब्लॉग में प्रकाशित करेंगे.”
दो मिनट के बाद ही उन्होंने एक सकारात्मक कविता लिखकर हमारे मैसेंजर पर भेज दी और साथ में लिखा- “दीदी, अब मैं सकारात्मक ही सोचूंगा, अंधियारी रात के बाद उजियारा दिन भी तो आता है न!” उम्मीद का दीप” जल चुका था.
— लीला तिवानी