दर्शन का उद्घोष है रक्षाबंधन
कहने को तो रेशम-डोर है लेकिन,
केवल रेशम-डोर नहीं है राखी,
भाई-बहिन के प्रेम-प्यार का,
पावनतम प्रतीक है राखी।
कितनी प्रतीक्षा के बाद है आता,
पावन-पर्व जो, लाए राखी,
बहिना का अपने भाई को,
सुख-संदेशा लाए राखी।
भाई-बहन के प्यार का बंधन,
है इस दुनिया में वरदान,
इसके जैसा दूजा न रिश्ता,
चाहे ढूंढ लो सारा जहान।
जीवन में नव उमंग को भरने,
आती है हर वर्ष ये राखी,
दोनों ओर से मंगल-कामना,
लाती है हर वर्ष ये राखी।
अध्यात्म का संदेश है रक्षाबंधन,
दर्शन का उद्घोष है रक्षाबंधन,
गीता का निचोड़ है रक्षाबंधन,
मानस का शुभ मोड़ है रक्षाबंधन।
— लीला तिवानी