कविता

दर्शन का उद्घोष है रक्षाबंधन

कहने को तो रेशम-डोर है लेकिन,

केवल रेशम-डोर नहीं है राखी,

भाई-बहिन के प्रेम-प्यार का,

पावनतम प्रतीक है राखी।

कितनी प्रतीक्षा के बाद है आता,

पावन-पर्व जो, लाए राखी,

बहिना का अपने भाई को,

सुख-संदेशा लाए राखी।

भाई-बहन के प्यार का बंधन,

है इस दुनिया में वरदान,

इसके जैसा दूजा न रिश्ता,

चाहे ढूंढ लो सारा जहान।

जीवन में नव उमंग को भरने,

आती है हर वर्ष ये राखी,

दोनों ओर से मंगल-कामना,

लाती है हर वर्ष ये राखी।

अध्यात्म का संदेश है रक्षाबंधन,

दर्शन का उद्घोष है रक्षाबंधन,

गीता का निचोड़ है रक्षाबंधन,

मानस का शुभ मोड़ है रक्षाबंधन।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244