कविता

प्रदूषण

शब्दों का प्रदूषण, फैल रहा चहुँ ओर, 

नेता जनता प्रशासन, मचा रहे सब शोर। 

गुण्डों और मवाली भाषा, जिसको कहते, 

संसद और विधानसभा, बने हुए अब ठौर। 

मर्यादा का चीरहरण, विधान सभा में होता, 

संसद में बैठा नेता भी, कब इससे पीछे होता। 

मची हुई है होड़, कौन किससे नीचे जायेगा, 

मुख्यमंत्री स्वयं इसकी, अगुवाई करता होता। 

— डॉ अ कीर्ति वर्द्धन