सामाजिक

पारिवारिक रिश्तों का महत्त्व

आलेख के शुरुआत में ही मैं आप सभी की जानकारी के लिए यह बता देना चाहता हूँ कि मैं कोई दार्शनिक, आलोचक या समीक्षक नहीं हूँ। एक इन्सान होने के नाते कुछ सोचना एवं चिन्तन करना मेरा स्वभाव है। इसी के चलते मेरे दिमाग में कुछ-न-कुछ चिन्तन चलता ही रहता है। ऐसा ही एक चिन्तन आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ।
बचपन में कहीं पढ़़ा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहता है। लेकिन यह समाज बनता किससे है? समाज बनता है एक सम्पूर्ण एवं सफल परिवार (जैसे- दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, बुआ-फुफा, भाई-बहिन, नाना-नानी, मामा-मामी आदि) एवं प्रत्येक वह व्यक्ति जो किसी-न-किसी प्रकार से आप या मुझसे जुड़ा हुआ है। ऐसे सभी आपसी रिश्तों के समूह से ही एक सुन्दर समाज की स्थापना होती है।
क्या हमें नहीं लगता कि आज के समय में यह समूह बिखरने के साथ-साथ अपनी पहचान भी खोता जा रहा है? मोबाइल एवं इण्टरनेट के इस युग में रिश्तों को आज हम किस नजर से देख रहे हैं या यूं कहा जाए कि उन्हें किस नजर से देखना चाहते हैं। इन सबके पीछे कहीं हमारा झूठा अहम्, ईर्ष्या, द्वेष, पद, पैसा या दिखावा तो नहीं है। यदि यही सब कारण है तो हम बहुत ही बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं।
पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि आज के माता-पिता अपने बच्चों के मन-मस्तिष्क में ऐसे कौनसे भाव भर रहे या उन्हें ऐसा क्या सिखा रहे हैं कि बच्चें अपने आपसी रिश्तों को भी अच्छी तरह से सम्भाल नहीं पा रहे हैं। उनके मन में अपने करीबी रिश्तों के प्रति एक अजीब प्रकार का भय बना हुआ है। इसके चलते रिश्तों में खिंचाव एवं दूरियाँ बढ़ती जा रही है। आज प्रतियोगिता ;ब्वउचमजपजपवदद्ध के इस दौर में बच्चों को अपनी पढ़ाई, केरियर एवं परिवार के बीच में सामंजस्य कैसे बनाना है, उसको लेकर भी काफी तनाव हैं। इसी कशमकश के चलते वे वैसे भी अपने महत्त्वपूर्ण रिश्तों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं या उनसे दूरी बना लेते हैं। वे अपने आपको असहज महसूस करते हैं। इसमें दोष उनका नहीं है। हम खुद भी नहीं चाहते कि हमारे बच्चें रिश्तों को निभाने के चक्कर में अपनी पढ़ाई एवं केरियर पर से ध्यान हटा लें। प्रायः देखा गया है कि एकल परिवारों में भी आपसी रिश्तों से दूरी बनाना आज एक फैशन सा हो गया है।
मेरा मानना है कि दूसरी अन्य कलाओं के साथ-साथ आपसी रिश्तों को अच्छे से निभाना भी एक कला है। इसमें त्याग, समर्पण, सामंजस्य, आदर-सम्मान आदि की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। रिश्तों को निभाने में कभी हानि-लाभ नहीं देखा जाता। आज जरूरत है कि हमें आपसी राग-द्वेष तथा अपने झूठे अहम् को छोड़कर हमारी नई पीढ़ी को पारिवारिक रिश्तों को सहजता एवं अच्छे से कैसे सम्भालना है, उन्हें कैसे निभाना है एवं आपसी रिश्तों की कद्र कैसे की जाती है, वो सबकुछ सिखाना होगा। परिवार में प्रत्येक सदस्य का अपना-अपना महत्त्व एवं अस्तित्व होता है। हमें उन्हें परिवार से जुड़े हुए प्रत्येक व्यक्ति के मान-सम्मान एवं उनके प्रति आदर की भावना से अवगत कराना होगा। उनके अन्दर अच्छे संस्कार के साथ विवेक को भी जाग्रत करना होगा। उनको यह अच्छे से पता होना चाहिए कि मेरा परिवार एवं उससे जुड़े कौन-कौनसे सदस्य हैं तथा मेरा उनके साथ क्या रिश्ता है?
यदि अभी भी हम ऐसा नहीं करते हैं तो आने वाली हमारी नई पीढ़ी को हम हमारे रिश्तों की क्या पहचान देकर जायेंगे। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होगा कि नई पीढ़ी भी केवल अपने माता-पिता तक ही सीमित होकर रह जायेगी और यह भी हो सकता है कि एक समय पश्चात् अपने केरियर की खातिर वे उन्हें भी अपने हाल पर छोड़कर अपनी नई दुनिया बसा लें। इसलिए हमें अभी से सम्भल जाना चाहिए। रिश्तों को सम्भालने की हमारी अभी से की गई एक पहल हमारे आने वाली नई पीढ़ी को एक सुनहरा भविष्य देने का निर्माण करेंगी। हम अभी भी नहीं जागें तो उसका भविष्य सोने के पिंजरें में बंद उस पक्षी के समान हो जायेगा, जिसको अपने पास सभी सुख-सुविधाएँ होने की खुशी तो बहुत है परन्तु उस खुशी को बांटने के लिए कोई रिश्ता उसके पास बचा ही नहीं। कहीं हमारा बच्चा रिश्तों के अभाव में इस भरे समाज में अकेला न रह जाए?
यह मेरा निजी चिन्तन है। मेरे इस चिन्तन से यदि आप भी सहमत है तो चलिए आज से ही हम अपने बच्चों को रिश्तों को सम्भालने के साथ उन्हें अच्छे से कैसे निभाया जाता है यह सिखाने की शुरुआत करते हैं। आइये, उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए एवं उनको साथ लेकर एक बार पुनः सुन्दर समाज का निर्माण करते हैं।
— राजीव नेपालिया (माथुर)

राजीव नेपालिया

401, ‘बंशी निकुंज’, महावीरपुरम् सिटी, चौपासनी जागीर, चौपासनी फनवर्ल्ड के पीछे, जोधपुर-342008 (राज.), मोबाइल: 98280-18003