ड्यूटी और संतुष्टि
रमेश कुमार बचपन से ही प्रतिभाशाली था। वह बड़ा होकर सेना या पुलिस विभाग में उच्च अधिकारी बन देश की सेवा करना चाहता था। इसके लिए वह हाड़तोड़ मेहनत भी कर रहा था। पर कहते हैं न कि समय से पहले और भाग्य से अधिक न कभी किसी को मिला है न मिल सकता है। रमेश कुमार के साथ भी ऐसा ही हुआ। वर्तमान गलाकाट प्रतिस्पर्धा और विभिन्न प्रकार के आरक्षण के कारण सामान्य वर्ग के प्रतिभाशाली नवयुवक रमेश कुमार को नौकरी के लिए निर्धारित उच्चतम सीमा के करीब पहुँचते तक मामूली सिपाही का पद ही हासिल हो सका।
व्यवहार में भले ही वह एक सिपाही था, परंतु कामकाज के मामले सभी उच्च अधिकारी उस पर आँख मूँदकर विश्वास करते थे। जिस थाने में उसकी पोस्टिंग होती, थानेदार उसकी प्रतिभा के कायल हो जाते। उसे हर छोटे बड़े काम में जरूर शामिल किया जाता।
गाँव से दूर रामपुर शहर में उसकी पोस्टिंग थी। अभी शादी हुई नहीं थी। माता-पिता शहर में रहना पसंद नहीं करते थे। यही कारण है कि वह शहर में किराए के मकान में रहते हुए रामपुर थाने में ड्यूटी करता था। नास्ता, खाना बनाने, बरतन धोने, कपड़े धोने, झाड़ू-पोंछा आदि का काम वह खुद ही कर लिया करता था। यही कारण है कि अक्सर सुबह ऑफिस पहुंचने में उसे 5-7 मिनट की देरी हो जाती थी, परंतु सरकारी दफ्तरों में 5-7 मिनट की देरी कोई बड़ी बात नहीं मानी जाती, ऊपर से रमेश कुमार जैसे प्रतिभाशाली सिपाही के लिए तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
एक दिन रमेश कुमार अपनी सेकंड हैंड मोटर साइकिल से थाना आ रहे थे। रास्ते में एक जगह भीड़ देखकर उन्होंने अपनी मोटर साइकिल साइड में खड़ी कर दी।
भीड़ को चीरते हुए अंदर जाकर देखा कि एक 9-10 साल के बच्चे को कोई चार पहिया वाहन चालक टक्कर मारकर भाग गया है। बच्चे की काफी चोटें आई थी। वहां मौजूद भीड़ बस कानाफूसी कर रही थी। वहाँ कोई भी व्यक्ति उस बच्चे को पहचानता नहीं था न ही उसकी मदद की बात कर रहा था।
पुलिस की वरदी में रमेश कुमार को देखकर भीड़ छँटने लगी। रमेश ने अगल-बगल देखा। कई दुकान के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। वह आश्वस्त हो गया कि बच्चे को ठोकर मारने वाले वाहन का पता लगाना मुश्किल नहीं होगा।
उसने बिना समय गँवाए घायल बच्चे को अपनी गोद में उठाकर एक आटो से ही नजदीकी अस्पताल में ले जाकर भर्ती करा दिया।
बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद उसे ऑफिस की याद आई। उसने अपने टी.आई. साहब को फोन लगाया। फोन उठाते ही टी.आई. साहब बोले, “कहाँ हो रमेश, मैं तुम्हें ही फोन लगाने वाला था।”
“नमस्कार सर, गाँधी चौक के पास एक चार पहिया वाहन चालक ने किसी बच्चे को टक्कर मार दी है। वाहन चालक तो फरार हो गया है, पर बहुत जल्द पकड़ा जाएगा, क्योंकि मौका-ए-वारदात पर कई दुकानों के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। सर, अच्छी बात ये है कि बच्चा बच गया है। मैं उसे अभी हॉस्पिटल ले कर पहुँचा हूँ सर।”
“क्या रमेश, तुम भी इन फालतू के चक्कर में पड़े रहते हो। अभी तक किसी ने एफ.आई.आर. दर्ज नहीं कराई और पुलिस होकर भी तुमने अपनी ड्यूटी शुरू कर दी।” टी.आई. साहब नाराज हो रहे थे।
“सर, ये आप कैसी बात कर रहे हैं ? पुलिस होने के साथ साथ मैं एक मनुष्य भी हूँ। यूँ किसी को सड़क पर मरने के लिए नहीं छोड़ सकता। भले ही नौकरी छूट जाए।” किसी तरह आवेग में आकर बोल दिया रमेश ने।
“ठीक है, ठीक है। तुम जल्दी से थाने पहुँचो। तुम्हें तो पता ही है कि आज विधायक जी की रैली है। हमारा वहाँ भी पहुँचना जरूरी है।” टी.आई. साहब बोले।
“जी सर, आप सीधे रामलीला मैदान पहुँचिए। मैं आपको वहीं मिलता हूँ।” रमेश ने कहा।
“ठीक है, जल्दी पहुँचो। मैं भी निकलता हूँ।” टी.आई. साहब बोले और उन्होंने फोन काट दिया।
डॉक्टरों ने रमेश को बताया कि बच्चे को सही समय पर अस्पताल ले आने से अब खतरे की कोई बात नहीं है। थोड़ी देर में होश में उसे होश भी आ जाएगा।
रमेश आश्वस्त होकर रामलीला मैदान पहुंचा। थोड़ी ही देर में टी.आई. साहब भी आ गए। विधायक महोदय का रैली को संबोधन चल ही रहा था कि उनकी श्रीमती जी का फोन आया।
उन्होंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। दुबारा आया तो उन्होंने भीड़ को ‘सॉरी’ बोलते हुए फोन उठा लिया। श्रीमती जी ने घबराई हुई आवाज में रोते हुए बताया कि उनके बेटे का एक्सीडेंट हो गया है और किसी भले पुलिस वाले ने उसे जिला अस्पताल में एडमिट करा दिया है।
विधायक जी ने हाथ जोड़कर अपना भाषण बीच में यह कहकर रोक दिया कि उन्हें “जरूरी कार्य से डिस्ट्रिक्ट हास्पिटल जाना होगा।”
विधायक महोदय के पीछे-पीछे टी.आई. साहब के साथ रमेश कुमार भी अस्पताल पहुँचे।
बच्चे को होश आ गया था। विधायक महोदय और उनकी श्रीमती जी इलाज कर रहे डॉक्टर से मिले। डॉक्टर ने रमेश कुमार की ओर इशारा करते हुए कहा, “आज आपका बेटा इन्हीं की बदौलत हमारे बीच सही सलामत है, जिन्होंने सही समय पर यहाँ लाकर इलाज शुरू करवा दी।”
विधायक महोदय और उनकी पत्नी कृतज्ञतापूर्वक हाथ जोड़कर रमेश के सामने खड़े थे।
थोड़ी देर बाद टी.आई. साहब प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे, “हमारी पुलिस आप लोगों की सेवा में चौबीसों घंटे तत्पर है। आज हमारे एक बहादुर सिपाही रमेश कुमार जी ने जिस तत्परता से माननीय विधायक महोदय के सुपुत्र को दुर्घटना के बाद अस्पताल पहुँचा कर उनकी जान बचाई, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। हमें रमेश कुमार पर गर्व है। हम आप सबको भरोसा दिलाते हैं कि चौबीस घंटे के भीतर बच्चे को टक्कर मारने वाले वाहन, वाहन चालक और उसके मालिक हमारे कब्जे में होंगे, क्योंकि जिस जगह दुर्घटना घटित हुई है, उस एरिया में कई दुकानों के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। हमें विश्वास है कि इनकी मदद से हम अपराधियों को पकड़ लेंगे।”
रमेश कुमार टी.आई. साहब को आश्चर्य से देख रहे थे। उसके लिए संतुष्टि की बात यह थी कि बच्चा अब खतरे से बाहर है।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा