सामाजिक

बहू की रीढ़ की हड्डी है सासु

मेरी तो किस्मत खराब है। सोंचा था एक बढ़िया सासु होगी। जो मेरे सुख दुःख में होगी। पति अपनी माँ से ज्यादा मुझे चाहने वाला होगा। पर इस सासु को देख कर मेरा माथा खनकता रहता है। बिन सासु का जीवन कितना प्यारा होता है। तनाव फ्री। आजादी की लहर होती है। जिन्दादिली होती है।

सुबह से शाम तक कांव-कांव लगाये रहती हैं। जैसे मैं कुछ जानती ही नहीं। बहू ऐसाकर लो। वैसा कर लो। ऐसा मत करो। मेरी माँ ने जीभर सिखाया है। हर काम कर लेती हूँ। पता नहीं कब मरेगी। यह बुढ़िया जी की जंजाल है। मेरे ही पल्ले पड़ना था। आजकल मैं कमजोर हो गयी हूँ। इसी सासु का टेंशन है। होंठ सूख गये हैं। चेहरे की रौनक चली गयी है। कमजोरी महसूस हो रही है। किससे कहूँ यह व्यथा। यह सब बहू के ख्यालात है। 

बेटे की शादी से पहले माँ ने ही कहा था। आंगन बन जाता तो बहू घर में रहती। बहू घर की इज्जत होती है। आंगन बन गया। शौचालय की जिद माँ ने ही कहा था। बन जाता तो ठीक रहेगा। बहू का बाहर जाना ठीक नहीं है। जमाना बदल गया है। हम बेटी भले बाहर जाती हैं लेकिन बहू के लिए शौचालय घर की मान मर्यादा है। 

बहू को सासु ही पहले पसंद करती है कि यह बहू ठीक है। तब बात पक्की हो जाती है। बहू के घर आने पर सासु ही ख्याल करती है। मायके की याद आ रही है इसलिए कमजोर हो गयी है। सासु ने दूध दही फल फूल की व्यवस्था कर दी। बहू सही रहेगी तो परिवार सही रहेगा। अरे बहू को खांसी आ रही है। काली चाय तुलसी अदरख की बन जाती है कि बहू की सर्दी ठीक हो जायेगी। बहू माँ बन जाती तो कितना अच्छा होता। मंदिर में पहला प्रार्थना सासु ने ही की। 

उल्टी हो रही है । लगता है बहू गर्भ से है। पहला अंदाजा सासु का होता है। बिना डाक्टर से पूछे कोई दवा मत लेना बहू। अपना ख्याल रखना। बेटा घर पर नहीं था। सासु ही दौड़ी थी हास्पिटल लेकर। उपरी प्रेतबाधा न हो। आधी रात को सासु दौड़ कर झाड़फूंक कराने गयी थी। रातभर बहू के हाथ पर को दबाया था जब उसके पूरे बदन में दर्द था। 

पहले बच्चे के आगमन तक सासु ही हास्पिटल में रही। पहला सोहर सासु ने गाया था। पड़ोसी किसी की सासु नहीं आयी थी जिसकी खूब तारीफ करती थी कि उसकी सासु सोने की चिड़िया की तरह है। अपनी सासु ही काम आयी। 

बहू के बच्चे की मालिश सासु है करती है। तब बहू सारा काम कर पाती है। नहाना धोना, खाना पकाना सासु की वजह से ही हो पाता है। एकदिन सासु बीमार हो गयी। घर में खाना नहीं बन पाया था। 

बहू के लिए भला बुरा क्या है यही तो बहू को सहेजती रहती है सासु। पर आजकल की बहूएं नकचढ़ी हो जाती हैं। बहू के लिए जो दर्द माया सासु को होगी वह किसी और को नहीं। 

सासु बहू के दो मीठे शब्द की भूखी होती है। उसकी बहू कभी बीमार न हो। यही कामना उस सासू की होती है। सासु बहू के लिए सबकुछ है। बहू को देखना चाहिए कि सासु के रहने पर घर भरा-भरा रहता है। बिन सासु का घर करके देखिए कैसा फील होता है। सासु घर की रीढ़ की हड्डी होती है। रीढ़ की हड्डी जैसे टूट जाती है बहू उस दिन दुनिया की सबसे असहाय प्राणी हो जाती है। 

— जयचंद प्रजापति 

जयचन्द प्रजापति

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