हौसला
हौसलों की बात, बस हौसलों से कीजिए,
बातों में बुज़दिली, अपनी न आने दीजिए।
जीवन मरण लाभ हानि, ईश्वर के आधीन,
हौसलों से अपने, वक्त बदलना सीखिए।
चीर कर चट्टानों को हमने, बाहर आ दिखा दिया,
हौसलों के हौसलों को, आगे बढ़ना सीखा दिया।
मुश्किलों की औक़ात क्या, राह की मुश्किल बनें,
हौसलों ने मुश्किलों का, वुजूद ही मिटा दिया।
कौन क्या कहेगा, कभी मत सोचिए,
राह में काँटे अगर, वह राह छोड़िए।
हौसला मुश्किलों से लड़ने का हो,
राह के पत्थरों का, अब रुख़ मोड़िए।
मुश्किलें आती, हौसलों का इम्तिहान लेती,
मुश्किलों से डरना नहीं, वह पैग़ाम भी देती।
बन्द होता एक रास्ता, नये की तलाश करो,
मुश्किलें नित हौसला, नये मुक़ाम भी देती।
आसमां की चाहतें लेकर चल रहा था,
चाँद मुट्ठी में होगा सोचकर चल रहा था।
क्या मिला परवाह नहीं, उसकी कभी की,
हौसलों की उँगली, पकड़ चलता रहा था।
टूटे परों को जब तुमने, उड़ने का हौसला दिया,
गगन तक आम औ दरफ्त, अब छोटी लगने लगी।
मुमकिन कहाँ महफ़िल मे, सिर उठाकर जा सकें,
जबसे हुनर सिखाया तुमने, फ़रमाइशें आने लगी।
विरानों में उपवन बना देने का हुनर है,
काँटों में फूल खिला देने का हुनर है।
हौसलों पर हमारे शक न करना कभी,
भँवर में फँसी कश्ती बचा देने का हुनर है।
— डॉ अ कीर्तिवर्धन