भाषा-साहित्य

हिंदी भारत की पहचान है

भाषा से ही एक राष्ट्र,  साहित्य, समाज और संस्कृति और संस्कार  का पता चलता है। भाषा इंसान की संजीवनी। इसलिए भाषा व्यक्ति की पहचान है। मेरा देश मेरी भाषा। एक राष्ट्र एक भाषा होनी चाहिए।

 आज हिंदी विश्व में बोली जाने वाली विश्व की दूसरी भाषा है। बढ़ती सोशल मीडिया की भाषा, बढ़ती इंटरनेट की भाषा और बढ़ती व्यापार की भाषा है। यह प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व की बात है। किंतु आज भी को अपने घर में एन संवैधानिक दर्जा मिला है और नहीं जितना मान सम्मान मिलना चाहिए उतना विश्व की दूसरी भाषाओं तरह नहीं मिल पाया है। यह खेद का विषय है।

आज देश में बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन होता है चाहे वह सरकारी कार्यक्रम हो या गैर सरकारी। वहां अंग्रेजी भाषा का ही बोलबाला रहता है। आखिर कब हिंदी को मन से और दिन से अपनाएंगे। जब हिंदी हमारी बहुसंख्यकों की भाषा है। लोकतंत्र की भाषा है। बावजूद हिंदी के मान सम्मान गिरावट क्यों देखी जाती है?आज हिंदी पढ़ने वाला युवा भी हिंदी पत्रिका नहीं खरीदता है। फिर हमारी हिंदी समृद्ध कैसे बनेगी? हिंदी चैनल भी हिंदी के साथ अन्य भाषा से मिलावटी भाषा के रुप में पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। सभी भाषाओं का सम्मान दिल से होना चाहिए किंतु हिंदी भाषा का मान सम्मान विशेष होना चाहिए क्योंकि हिंदी भाषा ही भारत की पहचान है।जिस तरह विश्व के प्रत्येक विकसित राष्ट्र की अपनी राष्ट्रभाषा ही राष्ट्र की पहचान होती है। जो राष्ट्र अपनी भाषा को महत्व देता है और अधिक से अधिक अपनी भाषा को प्रयोग करता है वह राष्ट्र उतना ही मान-सम्मान के साथ प्रगति भी करता है।हिंदी भाषा को आज लोकतंत्र की भाषा,शिक्षा नीति की भाषा और भारत के धरातल की जनमानस की भाषा बनाने की आवश्यकता है।सिर्फ हिंदी दिवस , हिंदी सप्ताह और पखवाड़ा मना कर हिंदी वाले खुशी महसूस करते हैं यह हिंदी के साथ न्याय नहीं कहलाएगा क्योंकि हिंदी बोलने वाला वक्ता और श्रोता भी जरूरत के वक्त हिंदी भाषा को छोड़ दूसरी भाषा अर्थात अंग्रेजी में बात करने में अपनी बुद्धिमानी समझता है। सच तो यह है कि व्यक्ति अपनी लोक भाषा से दूर होकर अपनी भाषा, अपनी संस्कृति की रक्षा कैसे संभव हो सकेंगी? आज हिंदी को न्याय की भाषा, चिकित्सा की भाषा, नौकरी की भाषा, उच्च शिक्षा की भाषा, शासन की भाषा और संस्कृति की भाषा बनाने की आवश्यकता है। आज हिंदी को ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनाने की जरुरत है।हमें हिंदी भाषा के साथ-साथ भारतीय भाषाओं को सीखने की भी अति आवश्यकता हैं। यदि

 देश की प्रादेशिक भाषाओं  में हमारी दिलचस्पी बढ़ेगी।हमारा रुजान बढ़ेगा तो भाषा संघर्ष  भी खत्म हो जाएगा।

 आज हिंदी साहित्य को ज्ञान- विज्ञान  के रूप में, तर्क-वितर्क के रूप में, शोध के रूप में मजबूत बनाने की आवश्यकता है।हिंदी को नई पीढ़ी व आने वाले भविष्य हेतु एक नए रूप में भी ढालने की आवश्यकता है ।उच्च गुणवत्ता युक्त शब्दकोश के साथ सहज, सरल एवं सारगर्भित तथा मनमोहक शब्दों के रूप में भाषा के बाजार में गतिशीलता की जरूरत है।

हिंदी को आज ज्ञान-विज्ञान के साथ शोध की भाषा, जरुरत कि भाषा और संस्कार की भाषा के रुप में भी आवश्यकता है।हिंदी को आज नए परिवेश में ढालने एवं सिंचने की जरूरत है। हिंदी हमारी जरूरत बने। हिंदी साहित्य भी है। विषय भी है। संस्कृति भी है और संस्कार भी है।

        हिंदी आजादी की भाषा रही है। हिंदी में राष्ट्र- प्रेम,देश -भक्ति और मानवीय मर्यादा के संस्कार है। बस आज हिंदी को नए रुप में तराश कर नई पीढ़ी के सामने बड़े ही एहतेराम के साथ स्वागत सत्कार से परोसी जाए।

हिंदी राजभाषा के साथ कब राष्ट्रभाषा के रूप में संवैधानिक रूप से दर्जा प्राप्त करेगी यह एक बड़ा प्रश्न है। आजादी के बाद भी आज तक यह प्रश्न उत्तर ढूंढ रहा है जबकि हिंदी विश्व के बाजार में अपनी बड़ी भूमिका ही नहीं निभा रही है बल्कि अपना स्थान भी बना रही है।

— डॉ.कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773