कविता

शब्द भेद की बाण?

बोल बोल कर बूढ़ी बाते, अब शरीर मे नही है जान।
अंत शब्द की भेदी बाणे, शब्द भेद का ले ज्ञान।
जीवन है इक राज कथानक, मुख मधुर या विष की पान।
मौन अधर या छैल छबीला, तुम अमृत, मै विष की खान।
सत्य झूठ की बात कहां अब, मन भाषा की क्या पहचान।
ग्रास रही है विकट वेदना, कैसे बचेगी अब ये जान।
अंधेरो की भूख मिटाने, छेड़े आदम सुर की तान।
जरा भूख की लालसा मन को, नियत उलट करे अभिमान।
कोई अपना फर्ज में लिपटे, कोई बन जाता बेईमान।
लचारी की पर्दे बुनते, बूढ़ी हो गई देख ईमान।
सहज हो गयी भाषा मुख पर, कोई तो करे इसका निदान।
भटक गए पथ इंसा की देहली, पग आदम की पड़े निशान।
अंजुम लुप्त हुई व्योम में, करे तमाशा अधम पहचान।
शिरोमणि की ताज है धारण, शेर की खाल में है इंसान।
मैं भी नही कोई दूध का धुला, रहा सोचता करे कोई गुणगान।
मन भी बावला तन भी बावला, कौन करे अब इसका सम्मान।
जब अंदर का दीप जले तब, मन साहस होता बलवान।
इक नदी में शेर है हिरन घट घट नीर करे रस पान ।
समझ मन में दस्तक देती, कली से सत का हो सम्मान।
बोल बोल कर बूढ़ी बाते, अब शरीर मे नही है जान।
अंत शब्द की भेदी बाणे, शब्द भेद का ले ज्ञान।

— दिव्यानंद पटेल

दिव्यानन्द पटेल

विद्युत नगर दर्री कोरबा छत्तीसगढ़