सामाजिक

नारी को अपनी आजादी का विस्तार दीजिए

आज दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की है। राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं की अहम भूमिका है। आज महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, मनोरंजन, राजनीति, धर्म, शिक्षा, व्यापार, कृषि, नौकरी, मजदूरी, सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना परचम लहराया हैं। हमारे शास्त्रों में महिलाओं का उच्च स्थान दिया गया है। उन्हें देवी के स्वरूप माना गया है।

“यत्र नार्यस्तु पुज्यंन्ते  रमंते तत्र देवता।” अर्थात् जहां नारियों की पूजा की जाती है। वहां देवता निवास करते हैं।

महिला के बिना इस दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती। महिला ही वंश को आगे बढ़ाती है। किसी भी देश की प्रगति में महिलाओं का स्थान विशेष होता है। परिवार, समाज और राष्ट्र के निर्माण में महिला का बहुत बड़ा योगदान होता है। महिला मां, पत्नी, बहन, बहू के रूप में अपना कर्तव्य निभाती है। महिलाओं के अभाव में मानव उत्पत्ति संभव है।महिला है तो घर है। महिला है तो समाज है। महिला है तो दुनिया है। जो मोहब्बत का पैगाम बांटती है। घर को रोशन करती है।वह आदमी की पूरी जिंदगी बदल देती है। एसा एक औरत ही कर सकती है। नारी शक्ति है। भक्ति है।अभिव्यक्ति है। वह घर को भी स्वर्ग बना देती है। मां, बहन, बेटी,बहु  के रूपों में ढलकर सदा अपना किरदार निभाती है। नारी में त्याग के भाव है। नारी में ममता की मूरत है।विपरीत परिस्थितियों में संबल है। तभी तो महिला का स्थान ऊंचा है।

आज 8 मार्च को विश्व महिला दिवस मना रहा है। इस दिवस की शुरुआत 1908 में मजदूर आंदोलन से हुई थी। इस मजदूर आंदोलन में तकरीबन 15000 से भी ज्यादा महिलाओं ने भाग लिया था। न्यूयॉर्क की सड़कों पर हुए इस आंदोलन में महिलाओं ने यह मांग उठाई  थी की मजदूरी के घंटे को कम किया जाए और वेतन को बढ़ाया जाए और मतदान का अधिकार दिया जाए। 1909 में अमेरिकी की सोशलिस्ट पार्टी ने आंदोलनकारी को सम्मानित करने की घोषणा की।लेकिन इस दिन को अंतरराष्ट्रीय बनाने का विचार क्लारा जेटकिन नामक महिला के दिमाग में आया था उन्होंने अपना यह आइडिया 1910 में ओपन हेग में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ वर्किंग वूमंस में दिया था।इस कांफ्रेंस में 17 देश को महिला प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। तब सब ने क्लारा के सुझाव का स्वागत किया था।महिला दिवस मनाने की घोषणा की थी।1910 से महिला दिवस वैश्विक रूप में प्रसिद्ध हुआ और प्रथम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2011 में आयोजित हुआ।यूरोप में महिला दिवस पर रेलियों में 10 लाख से ज्यादा लोगों ने भाग लिया था।

प्रथम बार महिला दिवस ‌1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी में मनाया।साल 1917 में रूस की महिलाओं ने रोटी और शांति की मांग के साथ चार दिनों का विरोध प्रदर्शन किया था। उस समय रुसी जार (राजा) को अपनी सत्ता को त्यागना पड़ा था और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार भी दिया। रूसी महिलाओं अपना विरोध प्रदर्शन शुरू किया था । रूस में इस्तेमाल होने वाले जूलियन कैलेंडर के मुताबिक 23 फरवरी और रविवार का दिन था। यही दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक 8 मार्च था और तब से इसी दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा। 1917 में सोवियत संघ ने मां महिला दिवस पर अवकाश की घोषणा की।विश्व के अनेक देशों में महिला दिवस पर अवकाश रहता है तो अनेक देशों में अवकाश न रहकर उसे व्यापक रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। 1911 में सिर्फ आठ देशों ने महिलाओं को वोट देने की अनुमति प्रदान की थी।संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1975 में इस दिवस को आधिकारिक रूप से मान्यता प्रदान की।

2011 में इसकी शताब्दी का आयोजन किया गया था। ‌2024 में दुनिया का 113वां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है।संयुक्त राष्ट्र संघ में 1996 में प्रथम बार इस आयोजन में एक थीम को अपनाया था- “अतीत का जश्न मनाओ, भविष्य की योजना बनाओ।”2024 में महिला दिवस की थीम “इंस्पायर इंक्लूजन” है।जिसका अर्थ है -“एक ऐसी दुनिया जहां हर किसी को बराबर का हक और सम्मान मिले।”

आज महिला और पुरुष दोनों मिलकर एक ऐसे समाज के निर्माण करने की आवश्यकता है- जिसमें दोनों के विकास के समान अवसर प्राप्त हो और समानता की राह का निर्माण हो।

महिला दिवस महिलाओं की उपलब्धियों को मनाने का दिन है और महिलाओं को अपने अधिकारों के हित सचेत करने का दिन भी है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को प्रदर्शित करने वाले रंगों में बैंगनी, हरा और सफेद है। यह तीनों रंग इंटरनेशनल वूमेंस डे के रंग हैं- “बैंगनी रंग न्याय और गरिमा का प्रतीक है। हरा रंग उम्मीद का प्रतीक है और सफेद रंग शुद्धता का प्रतीक है। ये तीनों रंग 1908 में ब्रिटेन की वीमेंस सोशल एंड पॉलीटिकल यूनियन (डब्ल्यूएसपीयू) तय किए थे।”

अंतर्राष्ट्रीय वूमेंस डे मनाते हुए एक शताब्दी के बाद भी आज दुनिया में लैंगिक समानता हासिल नहीं हुई है‌। यह एक बड़ा विचारणीय प्रश्न है। जिसका समाधान इस सदी में जितना जल्दी हो होना चाहिए। महिला लैंगिकता की समानता हेतु महिला आज भी संघर्षरत है। सामाजिक रूप से भारत में आज भी महिला असमानता का दंश झेलती आ रही है। ऐसे में विश्व महिला दिवस महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है।महिला दिवस मनाने की औपचारिक न बने बल्कि यह महिला सशक्तिकरण का प्रमुख आधार बने।

आज महिलाएं आत्मनिर्भर है वे पुरुषों को कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रही है जो महिलाएं गरीबी,अशिक्षा से कठिन जीवन यापन कर रही है और न्याय के लिए जूझ रही है उन्हें आगे उठाने की जरूरत है। आज महिला पुरुषों पर निर्भर रहना नहीं चाहती है। बल्कि आत्मनिर्भर बन रही है। आज की नारी आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती है। भारतीय संविधान में उसे पुरुष के बराबर का दर्जा दिया है। पितृ संपत्ति में बराबर हिस्से का हकदार बनाया है। बस उसे अपने हक का ज्ञान हो।महिला महिला में विभक्त न होकर  सशक्त बनने के लिए अपने कदमों को और मजबूत बनाएं। उसे आत्मविश्वास के साथ आत्मसम्मान हासिल करने की आवश्यकता है। महिलाओं को अपने अधिकारों को जानना और अपनी आत्मरक्षा, सम्मान और स्वतंत्रता हेतु प्रयोग करना जरूरी है तो अपने कर्तव्य को याद रखना भी जरूरी है।

महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को रोकने का प्रयास आम जनता और देश के नागरिक को करने चाहिए। सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है हम सब की जिम्मेदारी है। भारत में दहेज प्रथा को जड़ से खत्म करने की आवश्यकता है।इस प्रथा से महिला अत्याचार,,महिला हिंसा को बढ़ावा मिला है तथा साथ ही लैंगिक अपराध और महिला असमानता का जन्म हुआ है। महिला समानता, स्वतंत्रता एवं सम्मान में गिरावट आई है।देश में साल 2020 के मुकाबले 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.3% की वृद्धि हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 3,71,503 मामले दर्ज हुए थे। जबकि 2021 में यह संख्या बढ़कर 4,28,278 मामले हो गए।

राजस्थान में 2021 में बलात्कार की उच्चतम दर 16.4 की दर रही और यह वास्तविक दर जो 6,337 मामलों के साथ लिस्ट में टॉप पर है। यह हम सब के लिए विचारणीय और डरा देने वाले आंकड़े हैं। देश में महिला सुरक्षा के कड़े इंतजाम की आवश्यकता है। आज देश दुनिया में महिलाओं ने अपना उच्च स्थान भी प्राप्त किया है।

 देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल ,मुख्यमंत्री जैसे तमाम उच्च पदों पर महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है। चाहे सरोजिनी नायडू हो ,कमला नेहरू हो, श्रीमती इंदिरा गांधी हो,सोनिया गांधी हो, ममता बनर्जी,वसुंधरा राजे, प्रतिभा पाटिल, द्रौपदी मुर्मू, मीरा कुमार, सुषमा स्वराज, मायावती, निर्मला सीतारमन, सुमित्रा महाजन, स्मृति ईरानी जैसी राजनेत्री हो। तो खेलों में झूलन गोस्वामी, मिताली राज, जमुना बोरो ,एमसी मैरी कॉम, अंजू बॉबी जॉर्ज, पीटी उषा, पीवी सिंधु ,सानिया मिर्जा ,हिमा दास आदि प्रमुख है। साहित्य के क्षेत्र में भी नारी पीछे नहीं है-उषा देवी मित्रा, सरोजिनी नायडू, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान ,अमृता प्रीतम,शिवानी, कृष्णा सोबती, निरुपमा सेवती, मेहरुन्निसा परवेज, उषा प्रियंवदा, मृदुला गर्ग, प्रभात खेतान, मंजू भंडारी, शशि प्रभा, चंद्र किरण जैसी लेखिकाओं ने स्त्री चिंतन और स्त्री-लेखन को सार्थकता प्रदान की हैं।

हमारे देश की प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले थी ।फातिमा शेख,कदंबिनी गांगुली, जफर अली,चंद्रमुखी बसु जैसी प्रमुख महिलाओं ने महिला शिक्षा हेतु अपने पूरे जीवन को समर्पित किया था। महात्मा गांधी ने जीवन भर महिलाओं के हिमायती बने रहे। उन्होंने स्त्रियों के बारे में कहा था-“यदि मैं स्त्री के रूप में पैदा होता तो मैं पुरुषों द्वारा थोपे गए हर अन्याय का विरोध करता।”  देश के महान सुधारक एवं महिला उद्धारक डॉ. बी .आर. अंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों हित लड़ते हुए और हिंदू कोड बिल पूर्ण रूप से पास न होने पर अपने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।उन्होंने महिलाओं के बारे में कहा था -” मैं किसी समाज की प्रगति का अनुमान इस बात से लगाता हूं कि उसे समाज की महिलाओं ने कितनी प्रगति की है।”

महिलाओं की प्रगति और विकास से ही एक अच्छे राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है। एक आदर्श मां के संस्कारों से ही आने वाली पीढ़ियां संस्कारी होती है और राष्ट्र का कायाकल्प होता है। उच्च शिक्षित और धनी महिलाओं का यह नैतिक दायित्व बनता है कि ग्रामीण क्षेत्र में  एवं शहरों में  पिसती हुई नारी का सहयोग करें।आज महिला दो भागों में बटी हुई है एक वे महिला जो अशिक्षा ,गरीबी की वजह से दबी कुचली एवं पिछड़ी हुई है और दूसरी वह महिला है जो प्रगति के पथ पर आगे बढ़ चुकी है। जो आर्थिक रूप से सक्षम महिला है उनका नैतिक दायित्व बनता है कि वे दबी कुचली  महिलाओं का सहयोग करें। गरीबी से जूझती ,अत्याचार से पीड़ित महिलाओं को आगे बढ़ने का प्रयास करें। पुरुष वर्ग महिला उत्थान में सदा योगदान देता आया है किंतु पुरुषों को गलत धारणाओं से न देखें।संपूर्ण पुरुष वर्ग को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिएं। इस विश्व महिला दिवस पर संपूर्ण नारी जाति के विकास की सोच बनाकर आगे बढ़ाने के सपनों को साकार करने के संकल्पों को मजबूत करना चाहिए।महिला अत्याचार करने वालों के लिए कानून है। जो महिलाओं को समान अधिकार समान अवसर एवं उसका सम्मान स्वतंत्रता प्रदान करता है। बस मिलकर परिवार,समाज से सम्मान प्रदान करें महिला अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों को ना भूले।महिला दिवस मनाना तभी सार्थक है जब महिलाओं की दशा एवं दिशा सुधारने हेतु सरकार ही नहीं बल्कि समाज भी सार्थक रूप से कदम उठाए।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगा- “तेरी तो अकेले में भटक करके भी जिंदगी गुजर सकती है। पर एक नारी  ही है जो घर को घर बन सकती है।”

— डॉ. कांति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773