सामाजिक

जन्मदिन को खास बनाएं

सबसे पहले तो आप सबको आने वाले अनगिनत  जन्मदिनों की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूॅं।आप सभी स्वस्थ सानंद रहें, दीर्घायु हों।
       हम सभी जानते मानते हैं कि जन्मदिन एक खास खुशी का दिन होता है।आज के आधुनिक युग में समय के साथ जन्मदिन का स्वरूप भी आधुनिक हो गया है। पुरानी पीढ़ियों में जन्म दिन मनाने का प्रचलन लगभग न के बराबर था। अनेकानेक लोगों को अपने जन्मदिन का पता ही नहीं होता था। अब नये युग में बच्चों और न ई पीढ़ी ने, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, स्कूली दस्तावेज़ के आधार पर उन्हें जन्मदिन के अपने रंग में रंगने का वीणा उठा लिया, जिसे वे बच्चों की खुशी के लिए स्वीकार करना ही पड़ता है।
      आज के तकनीकी युग में जन्म दिन या विशेष तिथियों की जानकारी आसानी से मिल जाती है, अन्यथा आज की पीढ़ी भी जिंदगी की आपाधापी में जन्म दिन, विवाह तिथि भूली ही रहती, दूसरे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है की परंपरा का ईमानदारी से अनुकरण की प्रवृत्ति का अहम योगदान है। वरना मां बाप की उपेक्षा अपमान और सोशल मीडिया पर बड़ा प्यार दुलार दिखाने वालों में से अधिसंख्य की सच्चाई बहुत बेहतर ढंग से उनके अपनों शुभचिंतकों को पता है।
     फिर भी जन्मदिन मनाने के पीछे का बड़ा कारण मित्रों, शुभचिंतकों और संबंधियों की शुभकामनाएं और बड़ों का आशीर्वाद का मिलना/चाह होता हैं जिससे हृदय का  प्रसन्नता से आच्छादित होना स्वाभाविक ही है और होना भी चाहिए।
मगर यह कि हम अपनी परंपरा, सभ्यता आधुनिकता की आड़ में दफन करते हुए अपने को गर्वित महसूस करने का ढोंग करें। हम सबको पता है कि हमारी सनातन संस्कृति में जन्म दिन की अवधारणा ही अलग है। हम पाश्चात्य सभ्यता की तरह नकल करने में अपनी अकल खोते जा रहे हैं।
   केक काटना, मोमबत्तियां जला कर बुझाने का रिवाज तो कितना भद्दा है। भद्दा तो तब लगता है, केक पर संबंधित के नाम का उद्धरण, फिर केक काटने के नाम पर नाम का काटने के साथ एक ही जूठे हाथ से हम सभी को केक मुंह में खिलाते चले जाते हैं। यह सनातनी सभ्यता का लोप नहीं तो क्या है? और अपने बड़ों से आशीर्वाद लेने की औपचारिकतानिभाते हैं, दिखावा करते हैं। अब तो बड़ी बड़ी पार्टियां, आयोजन, नाच गाना ही नहीं बहुत बार तो शराब भी पीने पिलाने का दौर जन्मदिन मनाने के नाम पर होता है। हुड़दंग मचाया जा रहा है, पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है, उपहारों के औपचारिक लेनदेन की परिपाटी का विस्तार हो रहा है। जबकि जिन बड़ों के आशीर्वाद का ढोंग किया जाता है, उन्हें उपेक्षित रखा जाता है, अपने रिश्तेदारों, इष्ट मित्रों को आमंत्रण और सम्मान उनकी हैसियत के अनुसार दिया जाता है।
      जबकि सनातन, सभ्य समाज में पवित्र घी के दिए जलाकर मंदिर में अर्चना करके देवताओं के प्रसाद का वितरण किया जाता है। रोली चंदन अक्षत का टीका माथे पर लगाएं जाते हैं। बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद और छोटों को प्यार दुलार स्नेह देने की परंपरा है। जिसका स्वरूप अपवाद स्वरूप ही जिंदा है।
   खैर! हर किसी की अपनी सोच, धारणा, सामर्थ्य है और साथ में अपने विवेक का स्वतंत्र उपयोग करने की छूट। इसलिए किसी को इस विवाद में पड़ने से अच्छा है कि हम स्वस्थ सनातनी परंपरा का समर्थन करें और खुद इसका उदाहरण पेश करें। नई परंपरा और अपनी खुशी की आड़ में भौंड़ा प्रदर्शन न करें। और अपनी सनातनी सभ्यता को ऊंचाइयां प्रदान करने में अपना योगदान दें। और जन्मदिन को खास बनाएं।
     तो आइये! हम भी अपने हृदय के उद्गार व्यक्त करते है। हैप्पी बर्थ डे के बजाय शुभ मंगल, जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं, बधाइयां बोलते हैं। आधुनिकता की चाशनी से दूरी बनाए रखकर जन्मदिन को खासतौर पर यादगार बनाते हैं। यथा संभव निर्बल, असहाय, गरीबों की मदद करें, भोजन करायेगा, वस्त्र, धन देकर मदद करें, रक्तदान करें, वृद्धाश्रम, विधवा आश्रम, अनाथालय में जाकर यथा संभव धन, वस्त्र,फल, भोजन का वितरण करें, कुछ समय उनके साथ गुजारें।
अस्पतालों में जाकर फल वितरण करें, किसी असहाय की मदद करें।
      बस! अंत में इसी शुभेच्छा के साथ कि आप स्वस्थ रहें। जीवेम् शरदः शतम्। पश्येम शरदः शतम्।श्रृणुयाम शरदः शतम्। भूयश्च शरदः शतात्।
अशेष मंगल कामनाएं। 

*सुधीर श्रीवास्तव

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