गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपने हाथ से तुमने हरेक किस्सा मिटा डाला
भंवर के पार थी कश्ती किनारे पर डुबा डाला।

मुझे कब चाह थी आसमां के चांद तारों की
उम्मीदों का दिया वक्त से पहले बुझा डाला।

माना कोयला थे मगर मुझमें हीरे के टुकड़े थे
तुमने कोयला नहीं आग में हीरा जला डाला।

खिले थे फूल चाहत के दिल की जमीन पर
उसी दिलकी जमीं को आपने बंजर बना डाला।

कहें क्या हम जुबां से डर है रुसवाई न हो जाए
जुबां नाजुक थी आपने खंजर बना डाला।

बड़ी मुश्किल से आंखों में नमी आती थी बातों में
करम है आपका जानिब, आंखों को समंदर बना डाला

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर