राजनीति

सरकार की नीतियों में किसान- मजदूर-महिलाएं अदृश्य हैं

हरियाणा से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने रोहतक की मंडी का दौरा किया था ।उस दौरान उन्होंने कहा था कि भाजपा सरकार किसान, मजदूर और आढ़तियों से बदला ले रही है।क्योंकि इन तीनों ने मिलकर तीन कृषि कानून को लागू नहीं होने दिया और हरियाणा में प्राइवेट मंडियां नहीं बनने दी थी।इसी बौखलाहट के चलते अब सरकार जानबूझकर सुचारू रूप से सरसों और गेहूं की खरीद नहीं कर रही है । सरकार साजिश के तहत किसानों को प्राइवेट एजेंसियों के हवाले कर रही है। प्राइवेट खरीदार किसानों की मजबूरी का लाभ उठाते हुए एमएसपी से 1000 रुपये कम रेट पर सरसों खरीद रहे हैं। 1 तारीख से खरीद का ऐलान करने के बावजूद गेंहू की सुचारू खरीद भी अबतक शुरू नहीं हुई है ।सांसद दीपेंद्र सांपला मंडी का दौरा करने पहुंचे थे। इस मौके पर उन्होंने किसान, मजदूर व व्यापारियों की समस्याएं सुनी थी ।व्यापारियों ने उन्हें बताया था कि मौजूदा सरकार की नीतियों से प्रत्येक वर्ग पीड़ित है।आढ़तियों को इस बात का अंदाजा तभी हो गया था, जब ये सरकार 3 कृषि कानून लेकर आई थी।क्योंकि इन कानूनों से सिर्फ किसान ही नहीं, मजदूर व व्यापारी सबसे ज्यादा प्रभावित होते।इसलिए सभी ने इनका डटकर मुकाबला किया, लेकिन ये सरकार अब अप्रत्यक्ष तौर पर उन्हें लागू करके एमएसपी, मंडी, मंडी मजदूरों व आढ़तियों को खत्म करना चाहती है। किसानों ने दीपेंद्र हुड्डा को बताया कि एक बार फिर उन्हें पोर्टल और रजिस्ट्रेशन में गड़बड़झाले का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।कहीं गेहूं की जगह सरसों का पंजीकरण कर दिया गया है तो कहीं सरसों की जगह गेहूं का। डाटा मिसमैच होने की वजह से कई दिनों से फसल लेकर मंडी में बैठे किसानों से खरीद नहीं हो रही।इतना ही नहीं, मंडी में ना बारदाने की पूरी व्यवस्था है और ना ही रखरखाव के लिए तिरपाल का बंदोबस्त किया गया है। अगर बारिश होती है तो किसान की फसल भगवान भरोसे है। गौरतलब है कि किसान मजदूर आयोग ने दिल्ली के प्रेस क्लब में हुई बीते हफ्ते एक प्रेस वार्ता में किसानों के सारे कर्ज़ को माफ़ करने की मांग की थी। किसान मजदूर आयोग की तरफ से  संवाददाताओं को संबोधित करने वालों में प्रमुख तौर पर प्रख्यात जर्नलिस्ट पी साईनाथ, किसान नेता हंनान मोल्लाह, लेखक और एक्टिविस्ट डॉ नवसरण सिंह, अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव विजू कृषणन और खेत मजदूर संगठनों के नेता शामिल भी थे।पी साईनाथ ने कहा था कि ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद मोदी सरकार ने कई समितियां बनाई जिसमें नौकरशाह भरे हुए है जिसका कोई मतलब नहीं है। उनका कहना था कि एक ऐसा आयोग गठित होना चाहिए जिसमें सभी वर्गों के प्रतिनिधि शामिल हों, जिसमें किसान जिनके पास भूमि है, भूमिहीन किसान, बटाई पर खेती करने वाले किसान, महिला किसान, विस्थापित किसान, दलित किसान, आदिवासी किसान, मछली और मुर्गी पालने वाले किसान उनके संगठन आयोग में शामिल होने चाहिए। इसमें उन विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए जो किसान नहीं हैं लेकिन कृषि के मसलों पर जानकारी रखते हैं और किसानों और मजदूरों के प्रति चिंतित हैं।अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक ढवले ने कहा था कि किसानों के सारे कर्ज़ माफ़ किया जाए। क्योंकि पिछले दस सालों में कर्ज़ की वजह से एक लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। ये एनसीआरबी आंकड़े हैं। लेकिन किसानों के कर्ज़ अभी तक माफ़ नहीं किए गए हैं। जबकि इस मोदी सरकार ने बड़े कॉर्पोरेट के लिए 15 लाख करोड़ के कर्ज़ माफ़ किए हैं। उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी किसानों के भूमि अधिकार को मान्यता दी जानी चाहिए, वन अधिकार कानून (एफआरए) को लागू किया जाए, वनाधिकार के तहत खारिज किये गये सभी मामलों की समीक्षा हो तथा भारतीय वन कानून, 1927 में किये गये कॉर्पोरेट पक्षीय संसोधनों को वापिस लिया जाए। उनका कहना था कि महिलाओं को किसान के रूप में मान्यता दी जाए और उन्हें भूमि का अधिकार प्रदान किया जाए और पट्टे की ज़मीन पर उनके पट्टेदारी के हकों को सुरक्षित किया जाए।
अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव विजू कृषणन ने कहा कि विभिन्न दलों व मोदी सरकार की नीतियों के चलते पिछले 30-32 सालों में 10 लाख से अधिक किसान, खेत मजदूर और कृषि से जुड़े अन्य लोगों ने आत्महत्या की है। 2014 के चुनाव के दौरान मोदी और भाजपा के नेताओं ने काफी लुभावने वायदे किए थे और कहा था कि 1990-91 से जो नीतियां कृषि क्षेत्र में लागू की गई उन्हें पलटने की बात की ताकि उनके पक्ष में एक चुनावी माहौल तैयार किया जा सके। इसके साथ यह भी कहा गया था कि यूपीए के समय स्वामीनाथन आयोग की जो सिफ़ारिशें आईं थीं उन्हें भी लागू किया जाएगा, और कहा गया कि किसान की उपज का उत्पादन के खर्च से डेढ़ गुना अधिक दाम दिया जाएगा। हम जब मोदी सरकार में कृषि मंत्री से मिले तो उन्होंने कहा कि ये चुनावी वादे थे जिन्हें लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये बाज़ार को तबाह कर देंगे। विजू ने कहा कि हमारी मांगें सिर्फ नरेंद्र मोदी सरकार या भाजपा से नहीं है बल्कि हर उस राजनीतिक पार्टी से है जो सत्ता में बैठी है या भविष्य में सत्ता में आएगी। क्योंकि किसान-मजदूर विरोधी नीतियां आईएमएफ और डब्लूटीओ जैसे संस्थाओं के इशारों पर लागू की जाती हैं। तीन काले कृषि कानून भी बड़े कॉर्पोरेट के इशारों पर लाए गए थे। मनरेगा में 100 दिन का रोजगार देने की बात थी लेकिन 50 दिन का रोजगार भी नहीं मिल रहा है जबकि हमारी मांग 200 दिन का काम देना जरूरी है। डॉ नवशरन सिंह ने कहा कि जिस तरह की वादाखिलाफ़ी हमने देखी है, उसके मद्देनजर महिलाओं के मुद्दे भी इसमें जोड़ना चाहती हूं। हमारी सरकार अक्सर किसानों और महिलाओं की गरीबी दूर करने के लिए बातें करती रहती है, लेकिन जितनी भी तकलीफ ग्रामीण भारत झेलता है उसका बड़ा हिस्सा महिला और महिला किसानों को झेलना पड़ता है। उनके मुताबिक जितनी भी कामकाज़ी महिलाएं हैं उनमें से 75 प्रतिशत महिलाएं कृषि में काम करती हैं। वे या तो किसान हैं या फिर खेतों में मजदूरी करती हैं। महिला कार्यबल का 80 फीसदी हिस्सा स्व-रोजगार में शामिल है जिन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है। महिलाओं की केजुयल लेबर में 31 प्रतिशत से घट कर 19 प्रतिशत तक पहुंच गई है। नियमित रोज़गार में महिलाओं की भागीदारी पिछले 10 साल में जो 10 फीसदी थी वह वहीं की वहीं है। लेबर ब्यूरो महिलाओं के वेतन आंकड़ा जमा नहीं करता है। लेबर ब्यूरो ने अभी हाल ही में अपना आंकड़ा देकर कहा है कि पुरुषों के ग्रामीण वेतन में पिछले पांच सालों में 0.2 फीसदी बढ़ोतरी हुई है इसमें महिलाओं के आंकड़ें शामिल नहीं हैं।इससे साफ़ ज़ाहिर है कि सरकार की नीतियों में महिलाएं एक दम अदृश्य हैं। नवंबर 2023 का आंकड़ा है जिसे संसद के पटल पर रखा गया था कि 8.12 करोड़ किसान पीएम किसान योजना के लाभार्थी हैं जिसमें 6.27 पुरुष किसान हैं जोकि 77 फीसदी बैठता है और महिला किसान 1.83 करोड़ हैं। ऐसा क्यों है? जबकि 70 फीसदी महिलाएं कृषि के कार्यों में जुड़ी हुई हैं लेकिन इन किसानों के पास कुल भूमि 12.8 फीसदी ही है जिसका मतलब है बहुमत महिला किसान लाभार्थी योजनाओं से बाहर हैं जिसकी हमें फिक्र है। महिलाओं की ये स्थिति है और हमारी सरकार कह रही है कि हम महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए बड़े काम कर रहे हैं। नवशरन ने कहा कि हर आंदोलन में महिलाएं सबसे आगे रहती है तो उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ क्यों नहीं मिलता है।महिलाओं की आवाज़ को बड़ी तेजी के साथ उठाने की जरूरत है ताकि उन्हें उनका हक़ मिल सके।
संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक हंनान मोल्लाह ने कहा था कि, किसान अपने अनुभव से सीखा है कि हमारी कठिनाइयों का कारण कृषि नीतियां हैं जो किसानों के पक्ष में नहीं हैं। किसी भी नीति का मतलब क्या होता है। उसका मक़सद मुद्दों को समझना और उन्हें हल करने के लिए नीतियों को बनाना। लेकिन आज़ादी के बाद से जो कृषि नीति बनी है उसने किसानों के संकट और अधिक बढ़ाया है। नव-उदरावादी नीतियों की वजह से यह संकट अब तीव्र हो गया है और सरकारें कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के साथ आगे बढ़ रही हैं।प्रेस वार्ता में मौजूद आयोग के अन्य सदस्यों ने भी अपनी बातें रखी और कृषि संकट तथा किसानों की दुर्गति के बारे में चिंताएं व्यक्त की। सभी वक्ताओं ने कहा कि पीएम मोदी ने अपने 2014 के अभियान के दौरान वादा किया था कि वह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करेंगे यानी एमएसपी उत्पादन की सी2 लागत से 50 फीसदी अधिक तय करेंगे (जिसमें भुगतान की गई लागत का योग, पारिवारिक श्रम का मूल्य, स्वामित्व वाली पूंजीगत संपत्ति के मूल्य पर ब्याज, पट्टे पर दी गई भूमि का किराए के रूप में किया गया भुगतान और स्वामित्व वाली भूमि का किराए का मूल्य शामिल है)। वास्तव में, मोदी सरकार ने उत्पादन की ए2+एफएल लागत से 50 फीसदी अधिक एमएसपी तय करके किसानों को मूर्ख बनाया, जहां स्वामित्व वाली पूंजीगत संपत्ति के मूल्य पर ब्याज, पट्टे पर दी गई भूमि के लिए भुगतान किया गया किराया और स्वामित्व वाली भूमि के किराये के मूल्य को इस गणना से बाहर रखा गया है। किसान नेताओं और आयोग के सदस्यों ने कहा कि ऐसी गलत पद्धति के कारण, जिन फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा की जाती है, उनमें किसानों को लगभग 500-600 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो जाता है।उन्होने कहा कि, चूंकि चुनावी माहौल है इसलिए किसानों-मजदूरों के मुद्दों को आम जनता के भीतर ले जाना जरूरी है और यह प्रेस वार्ता इसका एक पहला कदम है। उनके मुताबिक किसानों और खेत मजदूरों के मुद्दों पर पूरे देश में अभियान चलाया जाएगा और किसानों के मुद्दों तरजीह दें की मांग की जाएगी।भारतीय जनता पार्टी द्वारा पंजाब में 2024 के संसदीय चुनावों के लिए छह उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही उत्तेजित किसानों ने भी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और अपने गांवों में भाजपा नेताओं के प्रवेश को रोकने वाले पोस्टर लगाना शुरू कर दिए हैं। ऐसे पोस्टर सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा तादात में वायरल हो रहें हैं। गौरतलब है कि पंजाब में 1 जून को मतदान होना है। अधिकांश बैनर विभिन्न किसान संघों द्वारा खुद से लगाए जा रहे हैं, वहीं शंभू और खनौरी सीमाओं पर किसानों के विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) ने भी एक अलग पोस्टर जारी किया है जिसमें किसानों के खिलाफ भाजपा की ‘बर्बरता’ की आलोचना की गई है। एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और केकेएम ने अपना पोस्टर युवा किसान शुभकरण सिंह को समर्पित किया है, जिनकी खनौरी सीमा पर कथित तौर पर सुरक्षा बलों ने तब गोली मारकर हत्या कर दी थी जब किसान 21 फरवरी को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। अधिकांश गांवों में, किसान दा दिल्ली जाना बंद है, भाजपा दा पिंड विच औना बंद है’ जैसे नारे वाले पोस्टर लगा रहे हैं’, जिन्हें भाकियू (एकता दकौंदा), भुचो खुर्द, भठिंडा द्वारा जारी किया गया। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर वायरल एक पिक्चर में भाकियू एकता, सिधुपुर का शुभकरण को समर्पित एक और बैनर कई गांवों में लगाया गया, जिस पर लिखा  था: मेरा की कसूर सी (मेरी क्या गलती थी)…सिर्फ पोस्टर ही नहीं, पंजाब के गांवों से मोदी सरकार पर सवाल उठाने वाले लोगों के वीडियो भी फेसबुक और इंस्टाग्राम पर वायरल हो गए हैं। सोशल मीडिया पर वायरल भाकियू एकता डकौंदा के पोस्टर में उल्लेख किया गया है कि चूंकि किसानों के दिल्ली जाने पर प्रतिबंध है, इसलिए भाजपा नेताओं के गांवों में प्रवेश पर प्रतिबंध ह।इस बात पर जोर देते हुए कि इस साल के किसान आंदोलन के खिलाफ हरियाणा सरकार की सख्त नीति के मद्देनजर किसानों में असंतोष और गुस्सा बढ़ रहा है, भाकियू क्रांतिकारी महासचिव बलदेव सिंह जीरा ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा, जिस तरह से शुभकरण सिंह की हत्या की गई, किसानों पर आंसू गैस के गोले और पैलेट्स का इस्तेमाल किया गया,जिसने किसानों को गंभीर रूप से घायल कर दिया, इससे लोग न केवल गुस्से में हैं बल्कि उन्होंने भाजपा का पूरी तरह से बहिष्कार करने का फैसला किया है।लोग पार्टी के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं और हर जगह ऐसे पोस्टर लगा रहे हैं। बलदेव ने कहा कि एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और केएमएम ने भाजपा नेताओं और विभिन्न दलों के अन्य राजनेताओं से सवाल पूछने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा, ‘हमारा आह्वान भाजपा से सवाल पूछने तक ही सीमित था। हालांकि, भाजपा से नाराज लोगों ने उसके नेताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले बैनर लगाने शुरू कर दिए हैं।हमने किसानों से न केवल भाजपा नेताओं बल्कि अन्य दलों के नेताओं से भी सवाल करने को कहा है, ताकि लोगों को एमएसपी और अन्य कृषि मुद्दों पर उनका रुख पता चल सके। इसका पंजाब में भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ेगा।

— जुनैद मलिक अत्तारी

जुनैद मलिक अत्तारी

स्वतंत्र लेखक पत्रकार नई दिल्ली