कविता

पुनर्जन्म का नव संबंध

ऐसा भी हो सकता हैबिल्कुल हो सकता हैऔर यकीनन होता ही है।हमें खुद इसका अहसास भी होता हैजीवन का कोई भी पहर होजाति, धर्म, उम्र या लिंग कुछ होबोध करा ही देता है हमेंपूर्वजन्म के आत्मिक संबंधों काऔर जगा देता है भाव उसके साथ रिश्तों का।जाने कितने जन्मों बाद जोड़ देता है हमें उससेजिसे हम आप जानते पहचानते तक नहींकभी मिले तक नहीं, शायद मिलेंगे भी नहींन नाम का पता,न शक्ल सूरत का कोई चित्रन दूर दर तक कोई रिश्ता, न कोई संपर्क- संबंध।फिर भी अपनत्व का भाव अंकुरित हो जाता हैऔर बन जाता है एक रिश्ताजिसे हम आप निभाते हैं बड़ी शिद्दत सेऔर अटूट विश्वास करने लगते हैंपिछले किसी जन्म के रिश्ते से जोड़संपूर्ण विश्वास के साथ निभाने लगी जाते हैंइस जन्म में भी पूर्व जन्म की तरहऔर बहाना होता है सीधा साधा सरल सा।जिसे मानने लगते हैं हम सब इसे पूर्वजन्मों का संबंध।जब हो जाता है इस जीवन में हमारा उस अंजाने से ऐसा कोई नव अनुबंध,और प्रगाढ़ होता जाता है हर पल ये प्रबंधजिसमें नहीं होता है कोई द्वंद।शायद इसीलिए ऐसे रिश्तों को कहते हैं हमपिछले जन्मों का है ये अटूट संबंध,जो इस जन्म में पुनः अंकुरित हो फलने फूलने लगा है हमारे रिश्तों का ये नव अनुबंध।

*सुधीर श्रीवास्तव

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