लघुकथा

रिश्तों का बंधन

एक साहित्यिक आयोजन के आमंत्रण हेतु शुरु हुआ आभासी संवाद का सिलसिला आगे बढ़ते बढ़ते हुए उस समय रिश्तों के बंधन तक जा पहुंचा। जब शशि ने करण के लिए राखी भेजने की बात कही, तब करण ने उसे सहर्ष स्वीकार कर खुद उसके घर आने का न केवल आश्वासन दिया,‌ बल्कि राखी के दिन अपनी बहन से राखी बंधवाने के बाद लगभग २०० किमी दूर जब शशि के घर पहुंचा तो शशि को सहसा विश्वास नहीं हुआ, लेकिन अविश्वास करती भी कैसे? बड़ा होकर भी जब करण ने उसके पैर छुए तो शशि की आंखों में आँसू आ गए। उसने भी करण के पैर छुए और फिर करण के गले लगकर रो पड़ी।

     करण ने उसके आंसू पोंछ कर उसे आश्वस्त किया और फिर दोनों घर के भीतर गए, जहाँ शशि की बेटी करण के लिए जलपान लेकर आई। 

     लेकिन करण ने शशि से कहा- पहले तू राखी बांधेगी । उसके बाद मैं जलपान नहीं सीधे भोजन करुंगा। सुबह से मैंने कुछ भी नहीं खाया है। वैसे भी औपचारिकता निभाना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।

     शशि ने करण का टीका कर आरती उतारने के बाद जब उसकी कलाई पर राखी बांधी, तब उसके चेहरे पर आत्मसंतोष का भाव था। करण ने परंपरानुसार शशि के पैर छुए और अपने बैग से निकाल कर उसके हाथों में एक पैकेट पकड़ाने लगा, तो शशि ने लेने से इंकार कर दिया। तो करण ने कहा, कि ये सिर्फ तेरे भाई का आशीर्वाद भर है। फिर भी तू मना करेगी, तो मैं भी चुपचाप चला जाऊँगा और फिर कभी नहीं आऊँगा। आगे से तू अपनी राखी डाक से भेजती रहना। 

 अब शशि के सामने अब कोई विकल्प नहीं बचा, उसने चुपचाप पैकेट ले लिया।उसके बाद शशि, उसकी बेटी और करण ने साथ बैठकर खाना खाया।

    शाम को करण ने जब वापस जाने को कहा तो शशि ने करण को यह कहते हुए रुकने को आग्रह किया कि पहली बार आप मिले और पहली बार ही घर आए हैं, तो क्या एक दिन इस बहन की खुशी के लिए रुक नहीं सकते?

      करण कुछ बोल न सका और शशि के सिर पर अपना हाथ रख  जाने का विचार त्याग दिया।

     शशि ने करण का जिस तरह से ध्यान रखा, देर रात तक उससे ढेर सारी बातें करती रही, उसकी आंखों में ख़ुशी के बहते आंसुओं से करण भावुक हो गया।

     अगले दिन शशि ने करण को खाना खिलाने के बाद ही जाने दिया। जाते हुए उसने करण से कहा भैया जी रिश्तों के इस बंधन को सदा मजबूत ही रखना और अपनी इस बहन को भूल मत जाना। 

     करण ने शशि के पैर छुए और उसका हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रखकर उसे आश्वस्त करने के साथ आशीर्वाद देकर जाने की अनुमति मांगी।

   आंखों में आँसू भरे और भावुक मन से शशि ने हाँ में सिर हिला दिया शशि और उसकी बेटी ने भी करण के पैर छुए और अपनी राह पकड़ी। दोनों ओझल होने तक करण को जाते हुए देखती रहीं। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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