कविता

रामराज्य का आदर्श

राम राज्य का अपना आदर्श थाजिसकी चर्चा करना व्यर्थ है,अच्छा होगा पहले रामजी के आदर्श काअपने जीवन में जो अनुराग भरता हो,उसे ही राम याराम राज्य की चर्चा का अधिकार है।माना कि राम बनना हमारे आपके लिए संभव नहीं हैइस पचड़े में पड़ने के बजायराम के आदर्श का एकांश ही सहीअपने जीवन में तो उतार लो।पर हम आप ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगेबस केवल राम और राम राज्य के आदर्शों कीसिर्फ लकीर पीट पीट कर और खुश होते रहेंगे।क्योंकि हम खुद कुछ नहीं करना चाहतेबनी बनाई पंगड़ियों ही पर ही चलना चाहते हैं,औरों की आड़ में ही सब कुछ पा लेना चाहते हैंअपने पेट का पानी तक हिलाना हमें मंजूर नहींहाँ। दूसरों को दोषी ठहराना हम खूब जानते हैं,सब कुछ शासन सत्ता से ही पा लेना चाहते हैं,अपने खुद के आदर्शों, कर्तव्यों से मुँह चुराना जानते हैं,बावजूद इसके राम राज्य का आदर्श भी चाहते हैं।ऐसा करके हम खुद के साथ हीराम जी भी को गुमराह कर रहे हैं,राम जी को हम आप बड़ा नासमझ मान रहे हैं,इसीलिए तो हम आप सब राम जी और उनके राज्य के आदर्श की चर्चा की आड़ मेंरामराज्य का वातावरण तैयार करने काअद्भुत काम करते हुए एक एक दिन गुजार रहे हैं,सपनों की दुनिया में रामराज्य का सुख भोग रहे हैं,और अपनी जिम्मेदारियों से मुँह चुराकर भीअपनी पीठ थपथपा कर बहुत खुश हो रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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