सात्विकसिंधु
“क्या हो गया है मेरे वतन को!” सात्विक शायद खुद से ही बात कर रहा था, और कोई तो वहां था ही नहीं!
“देश के कोने-कोने में विरोध-प्रदर्शन, दंगे-फसाद, दंगल-अमंगल! शांति का अग्रदूत अशांति का अड्डा बन गया है!”
“पर्यावरण प्रदूषित, इंसानियत की भावना लुप्त, स्वार्थ का बोलबाला, अनैतिकता का आतंक, ईमानदारी का अभाव!”
अखबार में, साहित्य में ऐसी ही सुर्खियों को तरजीह दी जा रही है. ये सुर्खियां दुनिया भर में जा रही हैं, क्या होगा मेरे वतन का हश्र!”
“नकारात्मकता से छुटकारा पाने के लिए कुछ करना पड़ेगा.”
सात्विक की सात्विकता का ही सुपरिणाम है साहित्यिक मंच “सात्विकसिंधु”.
सात्विक के मित्र-समूह द्वारा संचालित इस मंच का प्रमुख उद्देश्य है “वतनपरस्ती”.
वतनपरस्ती के कारण ही मंच “सात्विकसिंधु” देश-विदेश का चहेता मंच बन गया है.
कलम से ही सही, वतन के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा है “सात्विकसिंधु”.
— लीला तिवानी