कविता

पितृ पक्ष

यूँ तो दाना रोज खिलाती
पंछी भी दाना चुग जातीं
गउवें भी देहरी पर आतीं
निज हाथों से उन्हें खिलाती।

धर्म कहता है इन पंन्द्रह दिन
पूर्वज द्वारे पर आते हैं
आदर सत्कार पाकर फिर
ख़ुश होकर वो चल जाते हैं।

कर में कुश और तिल लेकर
मुख दक्षिण अपना रखकर
उल्टे हाथों से जल पिलाओ।

जब तिथि अपनों की आए
दोने में पकवान लेकर
काग श्वान को जा खिलाओ।

माना है यह धर्म कर्म की बातें
पर कुचले कैसे अपनी जज्बाते
क्या काग श्वान तेरे हैं रूप
तुम तो हो इस गृह के भूप।

माना कि वह है चले गए
पर रहते अब भी मेरे साथ
काग श्वान को पूर्वज माने
हमसे ना होगा नाथ।
क्षमा कर देना नाथ।

चाहे जिस लोक वो जाएं,
उनसे सदा आशीष ही पाए।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]

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