ग़ज़ल
कमज़ोरों की ख़ैर ख़बर क्यूँ ले कोई
बैठे ठाले दर्दे सर क्यूँ ले कोई
सब की अपनी अपनी ज़िम्मेदारी है
औरों की अपने ऊपर क्यूँ ले कोई
श्रेय विजय का सबको अच्छा लगता है
दोष पराजय का सर पर क्यूँ ले कोई
सच की धार बहुत तीखी है सच कहकर
अपने सीने पर खंज़र क्यूँ ले कोई
जिस बस्ती में उन्मादों का ड़ेरा है
बंसल उस बस्ती में घर क्यूँ ले कोई
— सतीश बंसल