सुपथ पर चलूं मैं
कल्पवृक्ष-सी कामना अमरबेल सी-प्रीत,
बनाती है जीवन को मनभावन-सा मीत,
लहलहाए उर-आंगन, मन हो प्रसन्नचित,
बने सरस सरगम, सृजित हो मधुरिम गीत।
प्रेम-प्यार-भ्रातृत्व, जग में बढ़ता ही रहे,
मानवता ही धर्म हो, दया कर्म हो रहे,
जाति-धर्म के भेद जो, मिट जाएं जग से,
सत्य सनातन समाहित, मन में हो रहे।
अटूट विश्वास खुद पे, हमेशा रखूं मैं,
कर हरि-आराधन, सुपथ पर चलूं मैं,
प्रेम-प्रसून से जीवन हो सुरभित,
मधुर भावना से जगत को भरूं मैं।
— लीला तिवानी