कविता

सुपथ पर चलूं मैं

कल्पवृक्ष-सी कामना अमरबेल सी-प्रीत,
बनाती है जीवन को मनभावन-सा मीत,
लहलहाए उर-आंगन, मन हो प्रसन्नचित,
बने सरस सरगम, सृजित हो मधुरिम गीत।
प्रेम-प्यार-भ्रातृत्व, जग में बढ़ता ही रहे,
मानवता ही धर्म हो, दया कर्म हो रहे,
जाति-धर्म के भेद जो, मिट जाएं जग से,
सत्य सनातन समाहित, मन में हो रहे।
अटूट विश्वास खुद पे, हमेशा रखूं मैं,
कर हरि-आराधन, सुपथ पर चलूं मैं,
प्रेम-प्रसून से जीवन हो सुरभित,
मधुर भावना से जगत को भरूं मैं।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244